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वे तो जानते ही नहीं थे ...

3.9
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वे तो जानते ही नहीं थे हर सुबह अखबार में छपता है तीन मरे तेरह घायल अखबार जो काली स्याही से छपे होते है छिपा लेते है सडकों पर फैले हुए लाल रक्त .... रोती हुई स्त्रियाँ और बच्चे दूर कही खो जाते है ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 अक्टूबर 2015
    "वेदों का कृतज्ञ हँ मै तो "  में मात्रा तक के ज्ञान का अभाव । राष्ट्र भाषा का अपमान करती नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता ।
  • author
    13 जनवरी 2019
    जो सब हम कहना चाहते हैं पर व्यक्त नहीं कर पाते, आपने कहा ।
  • author
    Pavan Maurya
    02 मई 2019
    अव्वल दर्जे की रचना सर
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 अक्टूबर 2015
    "वेदों का कृतज्ञ हँ मै तो "  में मात्रा तक के ज्ञान का अभाव । राष्ट्र भाषा का अपमान करती नितांत सारहीन व अप्रासांगिक कविता ।
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    13 जनवरी 2019
    जो सब हम कहना चाहते हैं पर व्यक्त नहीं कर पाते, आपने कहा ।
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    Pavan Maurya
    02 मई 2019
    अव्वल दर्जे की रचना सर