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हिन्दी

वासना की कड़ियाँ

4.3
313265

१ बहादुर, भाग्यशाली क़ासिम मुलतान की लड़ाई जीतकर घमंउ के नशे से चूर चला आता था। शाम हो गयी थी, लश्कर के लोग आरामगाह की तलाश मे नज़रें दौड़ाते थे, लेकिन क़ासिम को अपने नामदार मालिक की ख़िदमत में ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    उत्तम दिनोदिया
    08 अगस्त 2016
    हे ईश्वर, अगर यह सत्य घटना है तो आपकी लम्हा ब्यानी को सलाम और अगर ये आपकी कल्पना है तो फिर मां सरस्वती इस रचनाकार की शान में लिखने लायक करें, क्योंकि मुझ में इतनी सामर्थ्य नहीं।
  • author
    देवेश जौनपुरी
    12 दिसम्बर 2019
    शुरुआत में लगा कहानी नई है, मगर बाद में पता चला इसे तो पढ़ चुका था। अपने विचारों को छोड़कर क्षण भर के लिए कासिम के विचारों के धरातल पर जाकर सोचे तो लगता है "कासिम को अपनी इच्छा पूर्ति कर लेना चाहिए था....." फिर उसे मौत का भी अफसोस नहीं होता। क्षण भर के लिए ही सही उसे पूर्णता मिल जाती। उसके जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा होना था फिर संकोच कैसा। उससे बड़ा अपराध वह पहले भी कर चुका था! हजारों बेकसूर की जान लेकर .... बादशाह भी वासना का गुलाम था जो आत्मसंतुष्टि के लिए अपराध करवा रहा था। जिस कार्य का अंतिम परिणाम ही स्वार्थ पूर्ण और वासना ग्रसित हो उसका मध्य चाहे जैसा हो क्या फर्क पड़ता है। राजा ने उस सुंदरी को सैनिकों के बल पर हासिल किया जबकि कासिम ने अपने बाहुबल पर ! नीति भले कहती हो समर्पण भाव से पूर्ण काशिम राजा का विश्वसनीय सेनापति था, फिर भी ऐसा सेनापति जो जान की बाजी लगाकर अपने राजा के लिए कुछ कर रहा है राजा को भी उसकी इच्छाओं को समझना चाहिए और उसके जीवन की अनमोल चीज उसे दे देनी चाहिए।
  • author
    Atul Jain
    12 अगस्त 2019
    आपने इस कहानी को गलत रूप में पेश किया है | ये एक वीरांगना की गाथा है | वो अपने परिवार के कातिल कासिम को बादशाह व्दारा सजा दिलवाकर खुद को कटार से खत्म कर लेती है | जिससे बादशाह उसे नापाक ना कर सके |
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    उत्तम दिनोदिया
    08 अगस्त 2016
    हे ईश्वर, अगर यह सत्य घटना है तो आपकी लम्हा ब्यानी को सलाम और अगर ये आपकी कल्पना है तो फिर मां सरस्वती इस रचनाकार की शान में लिखने लायक करें, क्योंकि मुझ में इतनी सामर्थ्य नहीं।
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    देवेश जौनपुरी
    12 दिसम्बर 2019
    शुरुआत में लगा कहानी नई है, मगर बाद में पता चला इसे तो पढ़ चुका था। अपने विचारों को छोड़कर क्षण भर के लिए कासिम के विचारों के धरातल पर जाकर सोचे तो लगता है "कासिम को अपनी इच्छा पूर्ति कर लेना चाहिए था....." फिर उसे मौत का भी अफसोस नहीं होता। क्षण भर के लिए ही सही उसे पूर्णता मिल जाती। उसके जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा होना था फिर संकोच कैसा। उससे बड़ा अपराध वह पहले भी कर चुका था! हजारों बेकसूर की जान लेकर .... बादशाह भी वासना का गुलाम था जो आत्मसंतुष्टि के लिए अपराध करवा रहा था। जिस कार्य का अंतिम परिणाम ही स्वार्थ पूर्ण और वासना ग्रसित हो उसका मध्य चाहे जैसा हो क्या फर्क पड़ता है। राजा ने उस सुंदरी को सैनिकों के बल पर हासिल किया जबकि कासिम ने अपने बाहुबल पर ! नीति भले कहती हो समर्पण भाव से पूर्ण काशिम राजा का विश्वसनीय सेनापति था, फिर भी ऐसा सेनापति जो जान की बाजी लगाकर अपने राजा के लिए कुछ कर रहा है राजा को भी उसकी इच्छाओं को समझना चाहिए और उसके जीवन की अनमोल चीज उसे दे देनी चाहिए।
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    Atul Jain
    12 अगस्त 2019
    आपने इस कहानी को गलत रूप में पेश किया है | ये एक वीरांगना की गाथा है | वो अपने परिवार के कातिल कासिम को बादशाह व्दारा सजा दिलवाकर खुद को कटार से खत्म कर लेती है | जिससे बादशाह उसे नापाक ना कर सके |