ढूढ़ रही हूँ में उसको उन चद्दर की सिलवटों में प्रेमधीन हुए जोड़ों के बोसो में लबों पर टपकती हुई बारिश की बूंदों में वैश्यालयो के विषादो में सभ्य समाज की गालियों में मेरी पीठ पर पड़े हुए छालों में ...
मैंने जब से प्रतिलिपि पर कहानियाँ पढ़ना शुरू किया है उनमे आज तक की ये सबसे मधुर और वास्तविक रचना प्रतीत हो रही हैं आशा करता हूँ कि आगे भी आपके द्वारा रचित इस रचना से भी बढ़कर पढ़ने को मिलेगा
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