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वैदिक और शास्त्रीय संस्कृत साहित्य में दृश्यमान पर्यावरण संवेदनशीलता

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कस्त्वं भो कविरस्मि तत्किमु सखे क्षीणो S स्यनाहारत : धिग्देशं गुणिनो S पि दुर्गतिरियम् देशं न मामेव धिक् | पाकार्थी क्षुधितो यदैव विदधे पाकाय बुद्धिं तदा ...