अपनी भाषा अपना संस्कार।
है स्वतंत्र भारत का आधार।।
मैं क्या हूं न कवि न लेखक,
दिल की बातें लिखता हूं।
दुनिया के बाजारों में आकर
कौड़ी में नहीं बिकता हूं।।
विप्र कुल में जन्म लिया मैं
दुर्गा अवधेश के गेह में।
चौथी संतति मातु पिता के
पला सदा हीं नेह में।।
कला के शिक्षक बाबू जी ने
विज्ञान की मार्ग पर मोड़ दिया।
पर रुचि साहित्य की अपनी
संस्कृत से नाता जोड़ लिया।।
रिपोर्ट की समस्या
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