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वही पुरानी किताब

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मुझे आज वही पुरानी किताब मिल गई। जैसे बहती दरिया में कोई नाव मिल गई।। पलटते हीं पन्नों को सभी यादे ताजी हो गई। कैसे मिली वो और मेरे इश्क़ में राजी हो गई।। ...

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लेखक के बारे में

अपनी भाषा अपना संस्कार। है स्वतंत्र भारत का आधार।। मैं क्या हूं न कवि न लेखक, दिल की बातें लिखता हूं। दुनिया के बाजारों में आकर कौड़ी में नहीं बिकता हूं।। विप्र कुल में जन्म लिया मैं दुर्गा अवधेश के गेह में। चौथी संतति मातु पिता के पला सदा हीं नेह में।। कला के शिक्षक बाबू जी ने विज्ञान की मार्ग पर मोड़ दिया। पर रुचि साहित्य की अपनी संस्कृत से नाता जोड़ लिया।।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    28 मार्च 2021
    मुहब्बत के इस खेल में हम दोनों की हार हुई... पंक्तियों की हर जोड़ी का अंदाज -ए-बयां उम्दा है.
  • author
    Seema Ojha
    28 मार्च 2021
    बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
  • author
    Rakesh Kumar
    04 अगस्त 2021
    wah kya bat hai
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    28 मार्च 2021
    मुहब्बत के इस खेल में हम दोनों की हार हुई... पंक्तियों की हर जोड़ी का अंदाज -ए-बयां उम्दा है.
  • author
    Seema Ojha
    28 मार्च 2021
    बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
  • author
    Rakesh Kumar
    04 अगस्त 2021
    wah kya bat hai