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वाचाल प्रकृति🌿🌿

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हवा की सरसराहट कानों में रस घोलती है मानो प्रकृति हौले से हमसे कुछ कहती है जैसे कह रही….. अमृत कलश से भरी,वात्सल्य से भीगी ममता का आँचल पसारती माता हूँ मैं... स्निग्ध रश्मियाँ हाथ बढ़ा रक्षा सूत्र ...

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लेखक के बारे में
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Madhulika Sinha

M.sc. L.L.B. हूँ ।शब्दों से खेलना पसंद करती हूँ । अतीत और वर्तमान के आईने को अनुभव के पत्थरों से तोड़ती और उन्ही किरचों को चुन उन्हें शब्दरूप देना मेरा परिचय है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Nidhi Sehgal "सेहगल"
    12 नवम्बर 2020
    कविता नहीं गाथा लगी मुझे अमृतकलश से भरी वात्सल्य से भी की ममता के आंचल पसारती माता हूं मैं बहुत सुंदर बहुत सारी शुभकामनाएं डिजिटल प्रमाण पत्र के लिए
  • author
    Hemalata Godbole
    11 नवम्बर 2020
    मधूलिकाजी , एअ सुंदर रचना , जो भावों मे सरसता भरती अर्थ भी देती है। आपकी सभी रचनाओं को पढा मैने जो मनको पोषित करती है।शुभदीपावली शुभचिंतन
  • author
    विद्या शर्मा
    13 नवम्बर 2020
    बेहद भावपूर्ण रचना ,काव्य रस से भीगी और साहित्यिक सौन्दर्य से सजी..मेरे लिए ये प्रथम पुरस्कार से भी बढकर है
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    Nidhi Sehgal "सेहगल"
    12 नवम्बर 2020
    कविता नहीं गाथा लगी मुझे अमृतकलश से भरी वात्सल्य से भी की ममता के आंचल पसारती माता हूं मैं बहुत सुंदर बहुत सारी शुभकामनाएं डिजिटल प्रमाण पत्र के लिए
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    Hemalata Godbole
    11 नवम्बर 2020
    मधूलिकाजी , एअ सुंदर रचना , जो भावों मे सरसता भरती अर्थ भी देती है। आपकी सभी रचनाओं को पढा मैने जो मनको पोषित करती है।शुभदीपावली शुभचिंतन
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    विद्या शर्मा
    13 नवम्बर 2020
    बेहद भावपूर्ण रचना ,काव्य रस से भीगी और साहित्यिक सौन्दर्य से सजी..मेरे लिए ये प्रथम पुरस्कार से भी बढकर है