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उतर रही है भोर

4.3
218

धीरे- धीरे आसमान से उतर रही है भोर ओस नहायी हरी दूब में भीग गये हैं पांव। धुला पुंछा लगता है सारा का सारा ही गांव सारी रात जगी कमली का टूट रहा हर पोर धीरे- धीरे आसमान से उतर रही है भोर। लिये जा रहे ...

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समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Băďâļ Řäjpuţ
    25 जुलाई 2019
    अगर आपने यह खुद लिखी है तो यह सराहनीय है बहुत बढ़िया स्पेसिअल्ली दूर क्षितिज पर होठ धरा के अम्बर चूम रहा है काफी अलग लिखा है
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    21 जुलाई 2022
    प्रातः कालीन दृश्य का सुंदर वर्णन करती सुन्दर रचना ।
  • author
    Raja Pal
    20 सितम्बर 2022
    अत्यंत ही रोचक रचना...💐
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  • author
    Băďâļ Řäjpuţ
    25 जुलाई 2019
    अगर आपने यह खुद लिखी है तो यह सराहनीय है बहुत बढ़िया स्पेसिअल्ली दूर क्षितिज पर होठ धरा के अम्बर चूम रहा है काफी अलग लिखा है
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    अरविन्द सिन्हा
    21 जुलाई 2022
    प्रातः कालीन दृश्य का सुंदर वर्णन करती सुन्दर रचना ।
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    Raja Pal
    20 सितम्बर 2022
    अत्यंत ही रोचक रचना...💐