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उसने कहा था

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बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ीवालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबूकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों ...

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लेखक के बारे में

जन्म: 7 जुलाई 1883, पुरानी बस्ती, जयपुर, राजस्थान भाषा : हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी विधाएँ : कहानी, निबंध, व्यंग्य, कविता, आलोचना, संस्मरण प्रमुख कृतियाँ : गुलेरी रचनावली (दो खंडों में) संपादन : समालोचक, नागरी प्रचारिणी पत्रिका (संपादक मंडल के सदस्य) निधन: 12 सितंबर 1922, बनारस चन्द्रधर गुलेरी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होने हिन्दी, संस्कृत, पाली, प्राकृत एवं इंग्लिश भाषाओं में साहित्य का सृजन किया है। उन्होने साथ ही खगोल विज्ञान, ज्योतिष, धर्म, भाषा विज्ञान, इतिहास, शोध, आलोचना आदि अनेक दिशाओं में कार्य किया. ह कुछ समय तक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राच्य विभाग में प्राचार्य भी रहे।

समीक्षा
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    Deepak Vaishnava
    25 జూన్ 2017
    प्रायमरी अथवा मिडिल क्लास के पाठ्य पुस्तक में पढ़ा था । आज 58 का हो गया हूं फिर भी यह कहानी आज भी दिलो दिमाग मानस में तरो ताज़ा है । प्रेम एवम् बलिदान की अनोखी कहानी है । आज फिर पढ़ा तो आंसू छलक आये । सचमुच कागज के पन्नों पर उकेरे गए शब्दों में कितनी ताकत होती है ।हृदय एवम् मानस पटल को झंकृत कर देते है ।यह कहानी कालजयी कहानियों में सर्वोपरि है ।
  • author
    Madhavi Dikshit
    14 సెప్టెంబరు 2018
    पता नहीं कितनी बार पढ़ी है ये कहानी, बचपन में पहली बार पढ़ी थी,हर बार वही आनन्द आता है। कुछ रचनायें कालजयी होती हैं।
  • author
    durganarayan singh
    25 నవంబరు 2018
    गुलरी जी की एक कालजयी रचना, आज पुनः पचीसियों साल बाद पढ़ी, आज भी पूर्व की भांति भावुक कर गयी। निःसन्देह हिन्दी साहित्य की अनुपम कृति।
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    Deepak Vaishnava
    25 జూన్ 2017
    प्रायमरी अथवा मिडिल क्लास के पाठ्य पुस्तक में पढ़ा था । आज 58 का हो गया हूं फिर भी यह कहानी आज भी दिलो दिमाग मानस में तरो ताज़ा है । प्रेम एवम् बलिदान की अनोखी कहानी है । आज फिर पढ़ा तो आंसू छलक आये । सचमुच कागज के पन्नों पर उकेरे गए शब्दों में कितनी ताकत होती है ।हृदय एवम् मानस पटल को झंकृत कर देते है ।यह कहानी कालजयी कहानियों में सर्वोपरि है ।
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    Madhavi Dikshit
    14 సెప్టెంబరు 2018
    पता नहीं कितनी बार पढ़ी है ये कहानी, बचपन में पहली बार पढ़ी थी,हर बार वही आनन्द आता है। कुछ रचनायें कालजयी होती हैं।
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    durganarayan singh
    25 నవంబరు 2018
    गुलरी जी की एक कालजयी रचना, आज पुनः पचीसियों साल बाद पढ़ी, आज भी पूर्व की भांति भावुक कर गयी। निःसन्देह हिन्दी साहित्य की अनुपम कृति।