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उस शाम की नम चादर की तलाश

4.2
435

उस शाम की नम चादर की तलाश शेष है आज भी जिसकी नमी में नहाए घूमते थे हम साथ - साथ उस छोर तक धरती के जहाँ बिखरा था सिन्दूरी रंग भोर का ..... कहाँ गये ? वो खेत वो बाग वो नीम का छाँव वो ठांव जहाँ मिलती थी ...

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लेखक के बारे में

सम्पादक गाथांतर हिन्दी त्रैमासिक आजमगढ उत्तर प्रदेश

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    अमित आनंद
    25 अप्रैल 2021
    आज भी आती हैं बेटियां फागुन में नैहर अहा आंगन की माटी से महकते हैं शब्द, आप जब भी लिखते हो दी।
  • author
    Suchi Bhatt
    18 अप्रैल 2019
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति रचना के रूप में 👏👏
  • author
    jai prakash prajapati "J.p."
    07 जनवरी 2019
    आधुनिकता से दूरियां घटी नही वरन बढ़ गई।
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    अमित आनंद
    25 अप्रैल 2021
    आज भी आती हैं बेटियां फागुन में नैहर अहा आंगन की माटी से महकते हैं शब्द, आप जब भी लिखते हो दी।
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    Suchi Bhatt
    18 अप्रैल 2019
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति रचना के रूप में 👏👏
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    jai prakash prajapati "J.p."
    07 जनवरी 2019
    आधुनिकता से दूरियां घटी नही वरन बढ़ गई।