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उपहार

4.2
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अमेरिका से फोन था लपक कर रति ने रिसीवर उठाया । ,'हैलो , हाँ बेटा बोल । कैसा है? । " "माँ मैं शादी कर रहा हूँ ।" रति पर तो जैसे बिजली गिर पड़ी ," क्या कह रहा है तू , पागल तो नहीं हो गया है । हम यहां कितनेलड़की वालों को दिलासा दे कर बैठे हैं कि तू जब आयेगा तभी तय करेगा । हमारी तो नाक कटवायेगाक्या?" रति को क्रोधित होते देख मानस ने रिसीवर खींच लिया और शांत स्वर से बोले," क्या बात है बेटा ,एकदम से तय कर लिया । कुछ समय हमें भी सोचने के लिए दे देते ।" " पापा , मुझे मालूम है कि आप लोग यह ख़बर सुन कर ...

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लेखक के बारे में
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अन्नदा पाटनी
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pravin Sharma
    23 मार्च 2019
    कथानक बहुत ही लाजवाब है। बहुत अच्छी सोच एवं शिक्षा। किंतु अंतिम लाइनें अप्रभावी एवंधारा को बांधे नहीं रख पाईं। फिर भी एक अत्यंत सुंदर कहानी कही जाने योग्य। अच्छीकहानी।।।।👍
  • author
    Er Umakant Joshi
    05 सितम्बर 2017
    पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर आगन्तुक के प्रति अविश्वास की धारणा को तोड़ने वाली कहानी। अति उत्तम ¥¥¥¥¥
  • author
    रश्मि सिन्हा
    28 अगस्त 2017
    कोई भी कार्य पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर नही करना चाहिए, अच्छाई और बरसी हर जगह है। संदेशप्रद कथा👍👍
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    Pravin Sharma
    23 मार्च 2019
    कथानक बहुत ही लाजवाब है। बहुत अच्छी सोच एवं शिक्षा। किंतु अंतिम लाइनें अप्रभावी एवंधारा को बांधे नहीं रख पाईं। फिर भी एक अत्यंत सुंदर कहानी कही जाने योग्य। अच्छीकहानी।।।।👍
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    Er Umakant Joshi
    05 सितम्बर 2017
    पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर आगन्तुक के प्रति अविश्वास की धारणा को तोड़ने वाली कहानी। अति उत्तम ¥¥¥¥¥
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    रश्मि सिन्हा
    28 अगस्त 2017
    कोई भी कार्य पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर नही करना चाहिए, अच्छाई और बरसी हर जगह है। संदेशप्रद कथा👍👍