अपूर्णता कृति बच्चे को गोद में लिए सोच रही थी, कितनी खुशकिस्मत है वह, उम्मीद ही नहीं थी या यों कहें, सपने में भी सोच नहीं सकती थी कि एक दिन बच्चा उसकी गोद में खेलेगा, उसे माँ कहेगा। यह सुख भी किस्मत ...
'संतोष भाउवाला की लघुकथा 'अनकहा रिश्ता' एक बहुत ही उत्तम कहानी है ! यह कहानी उन सभी माता-पिता के लिए मार्गदर्शिका साबित हो सकती है, जिनका कोई बच्चा दुर्भाग्य से Third Gender पैदा हो जाए !
ऐसा होने पर माता-पिता जिस पीड़ा से गुजरते हैं , साथ ही उस बच्चे के लिए कितने सतर्क और सजग होते है कि उस बच्चे पे कभी किसी तरह की आँच न आए, इसका चित्रण संतोष जी ने बहुत ही सहजता और मार्मिकता से किया है ! माँ की समझदारी और सूझ-बूझ से 'कृति' की ज़िंदगी बन जाती है ! माँ -बाप के नासमझ होने पर ऐसे बच्चे परिवार से दूर होकर, किन्नर बन कर जीने के लिए विवश होते हैं ! लेकिन इस कथा ने Third Genders के लिए 'जीने की राह ' प्रस्तुत की है !
लेखिका की कलम को सलाम कि उन्होंने इस कथा के माध्यम से समाज को एक सुंदर राह दिखाई ! वे बधाई की पात्र हैं !
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अति सुंदर कहानी।परंतु यथार्थ में ऐसा होना असंभव नही तो कठिन अवश्य है।अभी इस प्रकार की सोच को विकसित होने में समय लगेगा।परंतु प्रेरणादायक कहानी के माध्यम से जागरूक करने का प्रयास सराहनीय है।
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जेंडर नहीं जज्बात जरूरी है !! प्यार , विश्वास से किसी भी रिश्ते रूपी पौधे को सींचा जा सकता है ....भले ही वो पौधा फल और फूल न दे ....लेकिन छाया जरूर देगा !!
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ऐसा होने पर माता-पिता जिस पीड़ा से गुजरते हैं , साथ ही उस बच्चे के लिए कितने सतर्क और सजग होते है कि उस बच्चे पे कभी किसी तरह की आँच न आए, इसका चित्रण संतोष जी ने बहुत ही सहजता और मार्मिकता से किया है ! माँ की समझदारी और सूझ-बूझ से 'कृति' की ज़िंदगी बन जाती है ! माँ -बाप के नासमझ होने पर ऐसे बच्चे परिवार से दूर होकर, किन्नर बन कर जीने के लिए विवश होते हैं ! लेकिन इस कथा ने Third Genders के लिए 'जीने की राह ' प्रस्तुत की है !
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