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ऊँचे पहाड़ों के अंचल में

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(1) जेल के कैदी जेल को जेल और जेल के बाहर के स्‍थान को 'दुनिया' के नाम से पुकारते हैं। इसी प्रकार पहाड़ के रहने वाले लोग अपने देश को 'पहाड़' और नीचे के देश को 'देश' के नाम से पुकारते हैं। या, यों ...

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लेखक के बारे में

जन्म : 26 अक्टूबर, 1890, अतरसुइया, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : पत्रकारिता, निबंध, कहान मुख्य कृतियाँ गणेशशंकर विद्यार्थी संचयन (संपादक - सुरेश सलिल) संपादन : कर्मयोगी, सरस्वती, अभ्युदय, प्रताप निधन 25 मार्च, 1931 कानपुर

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    jorno sanju03
    04 जून 2023
    लेखक की कुछ बातों से सहमत हूं लेकिन लगता है कि उन्होंने पहाड़ की रोटी के तीन सही हिस्सों का वर्णन नहीं किया सिर्फ एक टुकड़े के बारे में बताया जिसमें उन्होंने उच्च जाति के पहाड़ियों पर जातिवाद का लबादा पहना दियाl आज के पहाड़ को यदि आप किसी युवा चेहरे पहाड़ी चेहरे की नजर से देखे तो लेखक द्वारा इस लेख में लिखी गई बातें थोड़ा फीकी नजर आती हैं
  • author
    Alok Pandey
    14 जून 2019
    वाह आजादी के पहले का यात्रा संस्मरण। देश-धर्म के प्रति विचारों ने मन को झकझोर कर रख दिया।
  • author
    SHARMA FAMILY
    05 सितम्बर 2017
    बहुत अच्छे ढंग से पहाड़ को दर्शाया है। धन्यवाद
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    jorno sanju03
    04 जून 2023
    लेखक की कुछ बातों से सहमत हूं लेकिन लगता है कि उन्होंने पहाड़ की रोटी के तीन सही हिस्सों का वर्णन नहीं किया सिर्फ एक टुकड़े के बारे में बताया जिसमें उन्होंने उच्च जाति के पहाड़ियों पर जातिवाद का लबादा पहना दियाl आज के पहाड़ को यदि आप किसी युवा चेहरे पहाड़ी चेहरे की नजर से देखे तो लेखक द्वारा इस लेख में लिखी गई बातें थोड़ा फीकी नजर आती हैं
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    Alok Pandey
    14 जून 2019
    वाह आजादी के पहले का यात्रा संस्मरण। देश-धर्म के प्रति विचारों ने मन को झकझोर कर रख दिया।
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    SHARMA FAMILY
    05 सितम्बर 2017
    बहुत अच्छे ढंग से पहाड़ को दर्शाया है। धन्यवाद