मैं उषा गॉड एक रिटायर्ड अध्यापिका हूं। मैं एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 2016 में रिटायर हुई थी और उसके बाद मैं मुझे 2 साल की एक्सटेंशन स्कूल की तरफ से मिली कुल मिलाकर मेरा अध्यापन का अनुभव 36 साल का रहा। अध्यापन कार्य मेर मेरी दिल की गहराइयों में इतना समा गया की मैं अध्यापन के बिना अपने आप को अधूरा समझती हूं। रिटायर्ड तो होना ही था परंतु इसकीइसकी प्लानिंग मैंने कई साल पहले ही कर रखी थी। नवरात्रि के दिनों में बच्चों को कुछ ना कुछ उपहार दिया जाता है। मैं बच्चों के लिए पुस्तकें और और पढ़ने लिखने से संबंधित उपहार खरीदी थी और उनसे बातचीत करती थी। बातचीत और उनसे उनकी पढ़ाई को लेकर होती थी जैसे वह कहां पढ़ते हैं कितने साल के हैं और क्या वह मुझसे छुट्टियों के दौरान या खाली समय में पढ़ना चाहेंगे? ऐसा अनुभव हुआ कि मानो उन्हें कुछ अपना बहुत ही पसंद पसंदीदा पसंदीदा काम मिल रहा हो और वह खुशी खुशी राजी हो गए ।तोइस तरह शुरू हुआ मेरा अध्यापन कार्य रिटायरमेंट के बाद। और यह बच्चे कौन थे जो झुग्गी झोपड़ियों में रोड साइड रहते हैं। उनके संपर्क में आकर मुझे उनकी वास्तविक समस्याओं का अनुभव हुआ। और इस तरह से स
रिपोर्ट की समस्या
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