pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

उम्मीदें कहाँ हैं ?

3.7
365

उम्मीदें कहाँ हैं ? मैं जानता हूँ, तुम मेरा यक़ीन नहीं कर पाओगे , मगर मानो यह, जिन्होंने चख़कर देखा हैं ; ईंट , कोयला - घासलेट और पीकर जाना है, पसीनों में घुलते शरबतों का वहम वो रोक नहीं पाये ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

अभिव्यक्ति को सामने लाने की कोशिश कर रहा हूँ, और सिर्फ वही लिख रहा हूँ जो अभी मैं हूँ, तो उसे झूठ के शरबत की बजाय सच के काढ़े में घोलने का ज्यादा से ज्यादा प्रयत्न कर रहा हूँ । साथ ही जो धुंधलाते जा रहे कागजों पर था या है, उसे वैसा ही लिख देने से भी पीछे नही हटना चाहता हूँ | अतः अभिव्यक्ति की अपनी भाषा और अपनी चुप्पी को तलाशती रचनाये, आप से साझा कर रहा हूँ, साथ ही आपके सुझाव और सलाह की नितांत आवश्यकताओं के साथ....  धन्यवाद। 

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    कुमार अभिनंदन
    14 फ़रवरी 2020
    सुंदर
  • author
    विकास कुमार
    15 मार्च 2018
    बहुत खूब
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    कुमार अभिनंदन
    14 फ़रवरी 2020
    सुंदर
  • author
    विकास कुमार
    15 मार्च 2018
    बहुत खूब