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उजाला

3.9
3350

और मैं हो गई शर्म से पानी पानी जब पिता तुल्य हाजी जी ने टटोलीं मेरी पिंडलियां मैं कसमसाकर जम्पर बराबर करने लगी। इत्तेफाकन या दुभाग्य बिजली गुल उन्हें बल मिला, गदेलियां टहलने लगीं जम्पर के आर पार, ...

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समीक्षा
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  • author
    Satpal Singh
    23 மே 2020
    mam ji etne thode lafjon me aap ne sharif logo ko nakab noch kr unka asli chehra smaj k samne rkh diya
  • author
    alok
    01 செப்டம்பர் 2018
    अंधेरों में बहुत कुछ छिपा है ।आह, और सिसकियां
  • author
    मनोज गुप्ता "#man0707"
    29 மே 2021
    वाह , आपका अंदाजेबयॉं बेहतरीन है :)
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    Satpal Singh
    23 மே 2020
    mam ji etne thode lafjon me aap ne sharif logo ko nakab noch kr unka asli chehra smaj k samne rkh diya
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    alok
    01 செப்டம்பர் 2018
    अंधेरों में बहुत कुछ छिपा है ।आह, और सिसकियां
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    मनोज गुप्ता "#man0707"
    29 மே 2021
    वाह , आपका अंदाजेबयॉं बेहतरीन है :)