सुप्रिया के नाम यह कविता-पत्र बनते समय मन-मष्तिस्क में शिशु-सुप्रिया की मुस्कानें और प्रसिद्ध अंग्रेजी उपन्यास ‘जोनाथन लिंग्विस्टन सीगल’ छाया हुआ था। उपन्यास लगभग 7-8 साल पहले पढ रखा था। देह की रुग्णता के कारण नहीं जानता था कि ‘सीगल’ की लम्बी तपस्या इस क्रमिक पत्र में पूरी होगी, किन्तु मरने से पहले मृत्यु स्वीकार नहीं हुई इस साधक को! 7-9-1997, बैदों का चौक, बीकानेर चलो सुप्रिया शुरु करें हम, एक कहानी लम्बी। हो सकता है पूरी ना हो, है यह इतनी लम्बी॥ एक नन्हीं सी चिड़िया अपने, परिजन संग रहती थी। ...
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