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तुम्हारे बगैर

3.7
4015

पड़ा है सब बिखरा -बिखरा, जब से तुम हो खफा। दुनिया को दिखाते हैं हम, खुश हैं आगे बढ चुके जिंदगी में। लेकिन वही आकर खडे रहते, जहाँ से चलना शुरू किया तुम्हारे साथ। करता है मन की उसी जगह जाए, और फिर से ...

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लेखक के बारे में
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Devanshi Desai
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    રેખા શુક્લ
    27 अक्टूबर 2015
    waah bahot sahi farmaya  खुदगर्ज ये खुशियां  घूंटन हैं ये सिसकियां ना तराशो खुदा के लिये बिखर जाउंगी मिट्टी के लिये इत्नी ना इंतहा लो के  मरके भी जिंदा हो जी जाऊ पलके रूठी बिछाये सपनो में सांसो के करीब आगोश मे हमतुम कहानी के मुखपॄष्ठमें शूरू से अंतिम प्रकरणके पन्ने मे एक तुम ही तो हो जो सबकुछ जानते हो बोलोना दिदारे हाल हुं बेहाल जानता हुं बोलोना ...!! ----रेखा शुक्ला
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    11 अप्रैल 2022
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति । सही दिशा में प्रयास करने में क्या हर्ज है ।
  • author
    Saurabh Srivastava
    25 सितम्बर 2015
    very nice idea , well developed and nicely put.
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    રેખા શુક્લ
    27 अक्टूबर 2015
    waah bahot sahi farmaya  खुदगर्ज ये खुशियां  घूंटन हैं ये सिसकियां ना तराशो खुदा के लिये बिखर जाउंगी मिट्टी के लिये इत्नी ना इंतहा लो के  मरके भी जिंदा हो जी जाऊ पलके रूठी बिछाये सपनो में सांसो के करीब आगोश मे हमतुम कहानी के मुखपॄष्ठमें शूरू से अंतिम प्रकरणके पन्ने मे एक तुम ही तो हो जो सबकुछ जानते हो बोलोना दिदारे हाल हुं बेहाल जानता हुं बोलोना ...!! ----रेखा शुक्ला
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    अरविन्द सिन्हा
    11 अप्रैल 2022
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति । सही दिशा में प्रयास करने में क्या हर्ज है ।
  • author
    Saurabh Srivastava
    25 सितम्बर 2015
    very nice idea , well developed and nicely put.