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हिन्दी

-तुमने बाँटा था -

4.6
162

तुमने बाँटा था , तभी तो बँटा था मैं, तुमने बाँटा था , तभी तो बँटा था मैं कभी हिन्दू कभी मुसलमान बना था मैं, कभी जाती , कभी धर्म, कभी औरत , कभी मर्द, कभी गांव, कभी शहर, कभी पूरब , कभी पश्चिम , कभी ...

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लेखक के बारे में
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विकास कुमार

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समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    22 मार्च 2018
    पंक्षी नदियाँ पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके।यही गाना मुझे याद आ गया आपकी कविता पढ़कर ।
  • author
    05 अक्टूबर 2017
    वासतिवक्ता बहुत ही मार्मिक चित्रण ।
  • author
    Charu Panwar
    14 सितम्बर 2017
    Ati sunder 😊
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    22 मार्च 2018
    पंक्षी नदियाँ पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके।यही गाना मुझे याद आ गया आपकी कविता पढ़कर ।
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    05 अक्टूबर 2017
    वासतिवक्ता बहुत ही मार्मिक चित्रण ।
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    Charu Panwar
    14 सितम्बर 2017
    Ati sunder 😊