तुम सही, मैं गलत, यही होगी तुम सोचती । तुमने तो कर भी लिए सारे ज़रूरी फैसले की किसके अल्फ़ाज़ सही, किसके गलत ? किसका अंदाज़-ए-ब्याँ सही, किसका गलत ? पर कैसे करोगी कुछ बेकार के फैसले जैसे की किसके जज़्बात ...
आपने अपना पेननेम 'उन्स' रखा है। आपकी इस कविता में प्रेम भी उन्स के स्तर पर ही है, इसलिए इतने सवाल-जवाब हैं। सही-गलत की कसौटी पर रूहानी रिश्तों की परख नहीं होती। प्रेम के रिश्ते में तो हमेशा प्रेम ही सही होता है। वर्त्तनी की अशुद्धियों को भी दूर करना होगा ('कि' को आपने 'की' लिखा है)। प्रेम गहरा विषय है, आप महसूस करें फिर लिखें। आपकी रचनात्मक दृष्टि प्रभावित करती है।
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