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तुम नजर भर ये, अजीयत देखना

4.4
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तुम नजर भर ये, अजीयत देखना हो सके, मैली-सियासत देखना ये भरोसे की, राजनीती ख़ाक सी लूट शामिल की, हिमाकत देखना दौर है कमा लो, जमाना आप का बमुश्किल हो फिर, जहानत देखना लोग कायर थे, डरे रहते थे खुद जानते ...

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लेखक के बारे में
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सुशील यादव

जन्म 30 जून 1952 दुर्ग छत्तीसगढ़ रिटायर्ड डिप्टी कमीश्नर , कस्टम्स,सेन्ट्रल एक्साइज एवं सर्विस टेक्स व्यंग ,कविता,कहानी का स्वतंत्र लेखन |रचनाएँ स्तरीय मासिक पत्रिकाओं यथा कादंबिनी ,सरिता ,मुक्ता तथा समाचार पत्रं के साहित्य संस्करणों में प्रकाशित |अधिकतर रचनाएँ gadayakosh.org ,रचनाकार.org ,अभिव्यक्ति ,उदंती ,साहित्य शिल्पी ,एव. साहित्य कुञ्ज में नियमित रूप से प्रकाशित |

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Jai Sharma
    28 નવેમ્બર 2023
    राधे राधे यादव जी बहुत बढ़िया बहुत ख़ूब जी
  • author
    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    27 મે 2020
    वाह वाह ।मेरी रचनायें भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।
  • author
    saquib ahmed
    11 મે 2017
    अच्छा कहा है👌👌👌
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    Jai Sharma
    28 નવેમ્બર 2023
    राधे राधे यादव जी बहुत बढ़िया बहुत ख़ूब जी
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    PANKAJ KUMAR SRIVASTAVA
    27 મે 2020
    वाह वाह ।मेरी रचनायें भी पढे व अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करे ।
  • author
    saquib ahmed
    11 મે 2017
    अच्छा कहा है👌👌👌