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तुम बिन रहूँ मैं कैसे?

4.8
505

तुम बिन रहूँ मैं कैसे, है ये बड़ी पहेली हर कदम याद अब तेरी हर घडी राह बस तेरी हर सांस नव निमंत्रण अब तुमको दे रही है क्यों दूर जाके बैठे हर पल यही प्रशन है सुन धड़कनों की गुंजन अब तो करीब आओ तुम ...

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लेखक के बारे में

अपने विषय में क्या लिखूँ? केवल इतना ही कि मैं केवल एक "अंश" शेष सब "अनंत"!! जय श्री राधे-कृष्णा 🙏🙏🙏 गौरव द्विवेदी

समीक्षा
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  • author
    निरंजना जैन
    29 जून 2023
    'तुम बिन रहूँ मैं कैसे?' खूबसूरत भावसृजन आपका।👍👌👌👌👌
  • author
    Sandhya Rani
    08 अक्टूबर 2021
    उफ़्फ़!कितनी ख़ूबसूरत तमन्नाएँ, कितनी मोहक पीड़ा ...👌,कितने आज्ञाकारी शब्द,कितने सुन्दर ,नृत्य में लीन भाव ....बेशक भाई, आप सचमुच कवि हैं ....जो दिन में भी मुखर है,रात की प्रतीक्षा नहीं...👍गर्व करती हूँ, आपके रचनाकार पर ,प्यार भी 👏👏👏👌🌿🌱🌱☘️
  • author
    10 जनवरी 2022
    शायद मन की पीड़ा निकल कर पन्नों पर साकार हो गयी है । जिसके लिये ये पँक्तियाँ निकली हृदय से वह कितना खूबसूरत होगा और निश्चित रूप से इन भावों के काबिल होगा ।
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    निरंजना जैन
    29 जून 2023
    'तुम बिन रहूँ मैं कैसे?' खूबसूरत भावसृजन आपका।👍👌👌👌👌
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    Sandhya Rani
    08 अक्टूबर 2021
    उफ़्फ़!कितनी ख़ूबसूरत तमन्नाएँ, कितनी मोहक पीड़ा ...👌,कितने आज्ञाकारी शब्द,कितने सुन्दर ,नृत्य में लीन भाव ....बेशक भाई, आप सचमुच कवि हैं ....जो दिन में भी मुखर है,रात की प्रतीक्षा नहीं...👍गर्व करती हूँ, आपके रचनाकार पर ,प्यार भी 👏👏👏👌🌿🌱🌱☘️
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    10 जनवरी 2022
    शायद मन की पीड़ा निकल कर पन्नों पर साकार हो गयी है । जिसके लिये ये पँक्तियाँ निकली हृदय से वह कितना खूबसूरत होगा और निश्चित रूप से इन भावों के काबिल होगा ।