तुम बिन रहूँ मैं कैसे, है ये बड़ी पहेली हर कदम याद अब तेरी हर घडी राह बस तेरी हर सांस नव निमंत्रण अब तुमको दे रही है क्यों दूर जाके बैठे हर पल यही प्रशन है सुन धड़कनों की गुंजन अब तो करीब आओ तुम ...
उफ़्फ़!कितनी ख़ूबसूरत तमन्नाएँ, कितनी मोहक पीड़ा ...👌,कितने आज्ञाकारी शब्द,कितने सुन्दर ,नृत्य में लीन भाव ....बेशक भाई, आप सचमुच कवि हैं ....जो दिन में भी मुखर है,रात की प्रतीक्षा नहीं...👍गर्व करती हूँ, आपके रचनाकार पर ,प्यार भी 👏👏👏👌🌿🌱🌱☘️
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शायद मन की पीड़ा निकल कर पन्नों पर साकार हो गयी है । जिसके लिये ये पँक्तियाँ निकली हृदय से वह कितना खूबसूरत होगा और निश्चित रूप से इन भावों के काबिल होगा ।
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