"शिखा चलो ना यार पार्टी में! क्या करोगी अकेले घर में ?" "नहीं तुम चले जाओ, मैं घर पर ही रहूंगी।" शिखा ने कपड़े समेटते हुए बोला। " क्या यार अब तुम कहीं चलने को तैयार नहीं होती। पहले हमेशा हर जगह ...
बिल्कुल सही लिखा आपने, जब तक हम किसी के पीछे रहते हैं तो उड़े हमारी कद्र नही होती, और जब हम सब छोड़ कर आगे बढ़ जाते है तो वो ही लोग साथ चलने के लिए पीछे से पुकारते है।
रिपोर्ट की समस्या
सुपरफैन
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' परिवर्तन संसार का अटल नियम है। '
यह नियम न हो तो न तो कुछ नया निर्माण हो और न ही पुराना ध्वंस।
पर मनुष्य-मन है कि पहले से, पुराने से, अतीत से लगाव महसूस करता है, जुड़ा रहना चाहता है। जहाँ कुछ बातों में बदलाव चाहता है, वहीं बहुत सी बातों में बदलाव नहीं चाहता है।
पर किसी के लिए पहले जैसा बने रहना मुश्किल हो जाता है, होना मुश्किल हो जाता है।
समय के साथ मनुष्य की रुचियाँ, स्थितियाँ, परिस्थितियाँ, आवश्यकताएँ, जिम्मेदारियाँ बदल जाती हैं, बदलती रहती हैं।
इसीलिए कहा गया है ...
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं जमीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता
पर मन है कि
' फिर वो पहली सी मुहब्बत दे दो '
जबकि दूसरे के लिए मन:स्थिति और हालात ऐसा होने और करने नहीं देते, आखिर सब कुछ अपने बस में भी तो नहीं होता।
' मुझसे पहली सी मुहब्बत न मांग '
तब दिल कह उठता है
' चलो एक बार से अजनबी हो जायें हम दोनों '
या फिर
' एहसास का मारा दिल ही तो है।
बेचारा दिल ही तो है। '
और जब मन के मुताबिक चाहतें पूरी नहीं होती हैं तो
' ऐ मेरे दिल, कहीं और चल
ग़म की दुनिया से दिल भर गया '
' ओ जाने वाले, हो सके तो लौट के आना '
' आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़ न दे
दर्द में डूबे गीत न दे
ग़म का सिसकता साज न दे '
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सुपरफैन
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Yahi hota hai.. Human nature is so strange.. Jab ham kisi ko chahte hai to wo ignore karta hai.. Jab hum ignore krne lagte hai to achanak hi unke liye hum important ho jate hai...
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पर किसी के लिए पहले जैसा बने रहना मुश्किल हो जाता है, होना मुश्किल हो जाता है।
समय के साथ मनुष्य की रुचियाँ, स्थितियाँ, परिस्थितियाँ, आवश्यकताएँ, जिम्मेदारियाँ बदल जाती हैं, बदलती रहती हैं।
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और जब मन के मुताबिक चाहतें पूरी नहीं होती हैं तो
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