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टुकड़े

3.9
3554

कुछ टुकड़ें मिले हैं यादों के कुछ ढ़ूँढ़ रही हूँ कुछ इधर हैं कुछ उधर हैं सब तरफ बिखरे पड़े हैं। इनको बटोरना इतना आसान नहीं हैं सालों मैं बिखरे हैं यह दो पल का काम नहीं हैं। कल देखा था मैंने, बालकनी मे ...

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लेखक के बारे में
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मनीषा श्री

मे एक भू -विज्ञानिक हू। मने अपनी शिक्षा IIT रूर्की से २००५ मे पूरी करी और तब से तेल एवं गैस अन्वेषण विभाग में भूविज्ञानी के रूप में काम कर रही हू। मेरे लिए कविता लिखना सिर्फ एक शौक नहीं है, बल्कि यह मेरे जीवन में खुशी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। मैं अपने जीवन के अनुभव के अनुसार लिखती हू और उसमें अपनी भावनाऐ डालने का प्रयास करती हूँ । मेरी कविता हो सकता है सबसे अच्छा कृतियों मे ना हो , लेकिन अभी भी यह एक ईमानदार कोशिश है ।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Omparkash 'Hathpasaria'
    12 अक्टूबर 2015
    “ हर टुकड़ा अपने हिस्से का अधूरापन खुद ही जी रहा था “ – जीवन की त्रासद बिखरी स्मृति की संवेदनाओं को कवि ने जहाँ टुकड़ों में विभक्त करके मार्मिकता के साथ इस कविता में संजोया है, वह अपने आप में एक अद्भुत प्रयोग है कि फ्लैशबैक में ले जाकर फिर वर्तमान की खाई के यथार्थ में लाकर पटकना और अंत में प्रार्थना के रूप में कहना – “ काश कोई इन टुकड़ों को जोड़ दे “ – तो लगता है हम सबको एक साथ खड़े होकर कवि के साथ इस प्रार्थना में समवेत होना होगा . यही तो किसी कविता का उद्देश्य होता है,  जो किसी पाठक को कविता से जोड़ता है . एक कविता का उद्देश्य पूर्ण करती कविता का यही तो प्रमाण होता है .      
  • author
    pritam anand
    12 अक्टूबर 2015
    आपकी कविता जीवन के विभिन्न पहलुओं को जैसे दिखाती है वो प्रशंसनीय हैं।कवि की रचना ऐसी हो कि सीधे ह्रदय को छू ले।आपकी रचनाएँ ऐसी ही है।
  • author
    Jyoti Jain
    12 अक्टूबर 2015
    बहुत खूब मनीषा जी...  उम्मीद है टुकड़े सहेज पाओ.. आमीन।  :) :)
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    Omparkash 'Hathpasaria'
    12 अक्टूबर 2015
    “ हर टुकड़ा अपने हिस्से का अधूरापन खुद ही जी रहा था “ – जीवन की त्रासद बिखरी स्मृति की संवेदनाओं को कवि ने जहाँ टुकड़ों में विभक्त करके मार्मिकता के साथ इस कविता में संजोया है, वह अपने आप में एक अद्भुत प्रयोग है कि फ्लैशबैक में ले जाकर फिर वर्तमान की खाई के यथार्थ में लाकर पटकना और अंत में प्रार्थना के रूप में कहना – “ काश कोई इन टुकड़ों को जोड़ दे “ – तो लगता है हम सबको एक साथ खड़े होकर कवि के साथ इस प्रार्थना में समवेत होना होगा . यही तो किसी कविता का उद्देश्य होता है,  जो किसी पाठक को कविता से जोड़ता है . एक कविता का उद्देश्य पूर्ण करती कविता का यही तो प्रमाण होता है .      
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    pritam anand
    12 अक्टूबर 2015
    आपकी कविता जीवन के विभिन्न पहलुओं को जैसे दिखाती है वो प्रशंसनीय हैं।कवि की रचना ऐसी हो कि सीधे ह्रदय को छू ले।आपकी रचनाएँ ऐसी ही है।
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    Jyoti Jain
    12 अक्टूबर 2015
    बहुत खूब मनीषा जी...  उम्मीद है टुकड़े सहेज पाओ.. आमीन।  :) :)