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त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम्

4.9
1192

एक श्लोक आप सबने अवश्य सुना होगा ।  त्रिया चरित्रम् पुरुषस्य भाग्यम् । देवो न जानाति , कुतो मनुष्य : ।। इसका शाब्दिक अर्थ है कि स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य को देवता भी नहीं जानते तो मनुष्य ...

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लेखक के बारे में
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श्री हरि

हरि का अंश, शंकर का सेवक हरिशंकर कहलाता हूँ अग्रसेन का वंशज हूँ और "गोयल" गोत्र लगाता हूँ कहने को अधिकारी हूँ पर कवियों सा मन रखता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैं दिल से करता हूँ ।। गंगाजल सा निर्मल मन , मैं मुक्त पवन सा बहता हूँ सीधी सच्ची बात मैं कहता , लाग लपेट ना करता हूँ सत्य सनातन परंपरा में आनंद का अनुभव करता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैंदिल से करता हूँ

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    08 मार्च 2021
    अच्छी जानकारी पर माफ़ कीजिये सर,, पर हर जगह अलग अलग मत होते है, हर जगह स्त्री हो या पुरुष सबकी अपनी अलग कहानी है, हमारे ग्रंथ मे तो ये भी लिखा है जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवता भी रमण करते है... नारी की महत्ता का वर्णन करते हुये ”महर्षि गर्ग” कहते हैं – ‘यद् गृहे रमते नारी लक्ष्‍मीस्‍तद् गृहवासिनी। देवता: कोटिशो वत्‍स! न त्‍यजन्ति गृहं हितत्।।’ जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुख पूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। हे वत्स! करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।🙏🙏
  • author
    Maanvik Jamdagni
    17 सितम्बर 2022
    कमाल की रचना है आपकी धन्यवाद 🙏
  • author
    Hemalata Godbole
    09 मार्च 2021
    हरि भाई,हानी और इतहास है अपनी जगह,जोआपने अपने शब्दों मे सुनाया। इसमे दोराय नहीं कि आप अपनी जगह सही हैं और राजा भर्तृहरि गुरु गोरखनाथ भी जनकल्याणकारी कार्यऔर पवित्रमन राज्य कर रहे थे । पिंगला महारानी थी और राजा तो उत्कृष्ट थे पर वो रानी को अत्यधिक प्यार करते , पर मनकी बात नहीं जानते थे ।रानी सेनापति को उसकी शक्ति शाली होने प्यार करती थी और सेनापति वेश्या से , वेश्या , वेश्या होकर भी अपने कर्म को जानती थी कि ये कर्म निकृष्टतम है तो मुझे क्यों अमर होना चाहिये ।ये बिंदु भी ध्यान मे लियाजाए ।मेरे उज्जैन की कथा मुझे पता है।तो मानसिक रुप से वेश्या वेश्या होकर भी सामान्य स्त्री से अधिक चरित्रवान हैऔर रानी रानीहोकर भी समान्य स्त्री से भी निम्न हैजो व्यक्ति गत भावनात्मक रुप से अलग है ।न मैने रानी न वेश्या को बुरा कहा , राजा तो बुरा है ही नही कहानी यही कहती है कि स्त्री हो या पुरूष , चरित्र व्यवहार कर्तव्य सभी के लियेआवश्यक है ।गुरू ने भी राजा को सही अधिकारी समझा ।सभी स्त्रियां सच्चरित्र और पुरूष भी च रित्रवान या चरित्र हीन नही होते गुण दोष सभी मे हैं भाग्य भी दोनो के हैं ऐसा जरूरी नही कि भाग्य पुरष का ही अच्छा महत्व पूर्ण हो और चरित्र स्त्री का अचछा हो भाग्य कैसा भी हो चलेगा । और वो आज तो कदापि सही संभव नही ।आज तो दोनो को ही अपना चरित्रव्यवहार भाग्य सभी संभालना है।ये पौराणिक कहा नी सत्य है। न भी होती तो भी शिक्षा प्रद तो है ही कि चरित्रव्यवहार सही हो तो भाग्य भी सही होगा ।आजतो हमदेखते हैं सभी डांवाडोल है स्वार्थ बढ गया है । जहां संतुलन होने लगेगा सब सही होगा । मातापिता सही हों तो बच्चे भीसही होंगे ।।मै तो गुरु को भीपहले नमन करती हूं जिन्होंने पिंगला महारानी से भिक्षा मांग लाने को कहा जो प्रेयसी पत्नी थी उसे माता कहा वैराग्य यही है। कहानी तभी महत्वपूर्ण है जब बुरी बात से भी सीख ली जाए ।कि अब ऐसान हो खैर आपने बहुत ही सही रुप मे इसे सामने रखा । संस्कृत मे ये कहावत है , स्त्रियश्चरित्रम पुरुषस्य भाग्यम् देवो न जानाति, कुतो मनुष्यः ।इसे ही सामान्य तः त्रिया चरित्र कहते हैं। वैसे स्त्री का चरित्र अच्छा होना ही चाहिये पर पुरूष को भी अपना चरित्र संभालने की आवश्यकता है। मै अपनी स्वतंत्र रचना अभी नहीं देरही समीक्षाएं देकर कुछ समय स्वास्थ्य को दे रही हूं ।शुभकामनाएं।
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    08 मार्च 2021
    अच्छी जानकारी पर माफ़ कीजिये सर,, पर हर जगह अलग अलग मत होते है, हर जगह स्त्री हो या पुरुष सबकी अपनी अलग कहानी है, हमारे ग्रंथ मे तो ये भी लिखा है जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवता भी रमण करते है... नारी की महत्ता का वर्णन करते हुये ”महर्षि गर्ग” कहते हैं – ‘यद् गृहे रमते नारी लक्ष्‍मीस्‍तद् गृहवासिनी। देवता: कोटिशो वत्‍स! न त्‍यजन्ति गृहं हितत्।।’ जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुख पूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। हे वत्स! करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।🙏🙏
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    Maanvik Jamdagni
    17 सितम्बर 2022
    कमाल की रचना है आपकी धन्यवाद 🙏
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    Hemalata Godbole
    09 मार्च 2021
    हरि भाई,हानी और इतहास है अपनी जगह,जोआपने अपने शब्दों मे सुनाया। इसमे दोराय नहीं कि आप अपनी जगह सही हैं और राजा भर्तृहरि गुरु गोरखनाथ भी जनकल्याणकारी कार्यऔर पवित्रमन राज्य कर रहे थे । पिंगला महारानी थी और राजा तो उत्कृष्ट थे पर वो रानी को अत्यधिक प्यार करते , पर मनकी बात नहीं जानते थे ।रानी सेनापति को उसकी शक्ति शाली होने प्यार करती थी और सेनापति वेश्या से , वेश्या , वेश्या होकर भी अपने कर्म को जानती थी कि ये कर्म निकृष्टतम है तो मुझे क्यों अमर होना चाहिये ।ये बिंदु भी ध्यान मे लियाजाए ।मेरे उज्जैन की कथा मुझे पता है।तो मानसिक रुप से वेश्या वेश्या होकर भी सामान्य स्त्री से अधिक चरित्रवान हैऔर रानी रानीहोकर भी समान्य स्त्री से भी निम्न हैजो व्यक्ति गत भावनात्मक रुप से अलग है ।न मैने रानी न वेश्या को बुरा कहा , राजा तो बुरा है ही नही कहानी यही कहती है कि स्त्री हो या पुरूष , चरित्र व्यवहार कर्तव्य सभी के लियेआवश्यक है ।गुरू ने भी राजा को सही अधिकारी समझा ।सभी स्त्रियां सच्चरित्र और पुरूष भी च रित्रवान या चरित्र हीन नही होते गुण दोष सभी मे हैं भाग्य भी दोनो के हैं ऐसा जरूरी नही कि भाग्य पुरष का ही अच्छा महत्व पूर्ण हो और चरित्र स्त्री का अचछा हो भाग्य कैसा भी हो चलेगा । और वो आज तो कदापि सही संभव नही ।आज तो दोनो को ही अपना चरित्रव्यवहार भाग्य सभी संभालना है।ये पौराणिक कहा नी सत्य है। न भी होती तो भी शिक्षा प्रद तो है ही कि चरित्रव्यवहार सही हो तो भाग्य भी सही होगा ।आजतो हमदेखते हैं सभी डांवाडोल है स्वार्थ बढ गया है । जहां संतुलन होने लगेगा सब सही होगा । मातापिता सही हों तो बच्चे भीसही होंगे ।।मै तो गुरु को भीपहले नमन करती हूं जिन्होंने पिंगला महारानी से भिक्षा मांग लाने को कहा जो प्रेयसी पत्नी थी उसे माता कहा वैराग्य यही है। कहानी तभी महत्वपूर्ण है जब बुरी बात से भी सीख ली जाए ।कि अब ऐसान हो खैर आपने बहुत ही सही रुप मे इसे सामने रखा । संस्कृत मे ये कहावत है , स्त्रियश्चरित्रम पुरुषस्य भाग्यम् देवो न जानाति, कुतो मनुष्यः ।इसे ही सामान्य तः त्रिया चरित्र कहते हैं। वैसे स्त्री का चरित्र अच्छा होना ही चाहिये पर पुरूष को भी अपना चरित्र संभालने की आवश्यकता है। मै अपनी स्वतंत्र रचना अभी नहीं देरही समीक्षाएं देकर कुछ समय स्वास्थ्य को दे रही हूं ।शुभकामनाएं।