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ट्रेन का सफर

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चंडीगढ़ में एक कजिन बहन की शादी थी । सारे घर वाले तो पहले ही जा चुके थे बस मुझे ही ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाई तो मैं शादी के एक दिन पहले ही जा रही थी। ऑफिस से छूटने के बाद वही से सीधा स्टेशन ...

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लेखक के बारे में
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Diव्या पAL

'या देवी सर्वभूतेषु विद्या-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

समीक्षा
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    kanhaiya khatri (. K. K .)
    28 अप्रैल 2025
    आपका लिखने का अंदाज बहुत शानदार है। बहुत ही बेहतरीन ढंग से कहानी को लिखा है पढ़कर बहुत-बहुत अच्छा लगा बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति है आपकी वाह लाजवाब वाह 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
  • author
    Sss
    29 अप्रैल 2025
    बहुत ही खूबसूरत माहौल सेट किया है तुमने डर का,, एक समय तो मुझे आभास हुआ की कहीं यह घटना सचमुच तो आसपास नहीं हो रही है। खैर तुम्हारी स्टोरी पढ़ कर एक पास शेयर करना चाहूंगी मैं और मेरे पति ट्रेन के रास्ते हनीमून के लिए दिल्ली जा रहे थे, मुझे ट्रेन का एक्सपीरियंस कम था,, हम लोगों ने सीट तो बुक तो कराई थी,, पर शायद भीड़ की वजह से एक लाश को कोने में सुला दिया गया था,, मैं नहीं जानती थी की ये लाश है,, मैं सुद्दनली वहां पर बैठ गई,, पति ने मुझे दो-तीन बार इशारा किया पर इसारे को मैं नहीं समझ पाई थी और वहीं बैठी रही तब उन्होंने मुझे गुस्से से वहां से हटाया और कान में बताया कि यह लाश है। आज भी जब यह घटना याद आती है तो डर लगता है
  • author
    Kapil Nagrale
    29 अप्रैल 2025
    सपना या हकीकत मेरे।भी समझ में।नहीं आया बट जो लिखा डर का माहौल क्रिएट हुआ ऐसे लगा सच में मुर्दे के ट्रेन में सफर कर रहे हैं आप एक। अच्छी रचनाकार हो कहानी से पता चलता है लिखते रहिए गा। बट ट्रेन में सफर करने वाला जेंट्स था या लेडीज थी मुझे तो पता ही नहीं चला आइंदा खयाल रखें मुख पात्र सही लिखना चाहिए
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    kanhaiya khatri (. K. K .)
    28 अप्रैल 2025
    आपका लिखने का अंदाज बहुत शानदार है। बहुत ही बेहतरीन ढंग से कहानी को लिखा है पढ़कर बहुत-बहुत अच्छा लगा बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति है आपकी वाह लाजवाब वाह 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
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    Sss
    29 अप्रैल 2025
    बहुत ही खूबसूरत माहौल सेट किया है तुमने डर का,, एक समय तो मुझे आभास हुआ की कहीं यह घटना सचमुच तो आसपास नहीं हो रही है। खैर तुम्हारी स्टोरी पढ़ कर एक पास शेयर करना चाहूंगी मैं और मेरे पति ट्रेन के रास्ते हनीमून के लिए दिल्ली जा रहे थे, मुझे ट्रेन का एक्सपीरियंस कम था,, हम लोगों ने सीट तो बुक तो कराई थी,, पर शायद भीड़ की वजह से एक लाश को कोने में सुला दिया गया था,, मैं नहीं जानती थी की ये लाश है,, मैं सुद्दनली वहां पर बैठ गई,, पति ने मुझे दो-तीन बार इशारा किया पर इसारे को मैं नहीं समझ पाई थी और वहीं बैठी रही तब उन्होंने मुझे गुस्से से वहां से हटाया और कान में बताया कि यह लाश है। आज भी जब यह घटना याद आती है तो डर लगता है
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    Kapil Nagrale
    29 अप्रैल 2025
    सपना या हकीकत मेरे।भी समझ में।नहीं आया बट जो लिखा डर का माहौल क्रिएट हुआ ऐसे लगा सच में मुर्दे के ट्रेन में सफर कर रहे हैं आप एक। अच्छी रचनाकार हो कहानी से पता चलता है लिखते रहिए गा। बट ट्रेन में सफर करने वाला जेंट्स था या लेडीज थी मुझे तो पता ही नहीं चला आइंदा खयाल रखें मुख पात्र सही लिखना चाहिए