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ट्रेन

3.7
18298

रात के नौ बज रहे थे । ट्रेन चल चुकी थी । धीरे-धीरे गाड़ी प्लेटफॉर्म से दूर जा रही थी । शहर की गहमा-गहमीयों से नाता टूट रहा था और शांत प्रकृति से जुड़ रहा था । साइड वाली बर्थ थी उसकी। लग्गेज सीट के ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Yogiraj Prajapati "Yogi"
    13 ఫిబ్రవరి 2019
    ap duniya ki sabse romantic lekhika ho....
  • author
    29 జులై 2017
    प्रियंका जी बहुत अच्छा प्रयास। पर और अच्छी कोशिश कीजिए।
  • author
    13 అక్టోబరు 2016
    आपकी शब्दों के प्रयोग ..वाकई में काबीलेतारीफ है. आधुनिक युग के आप प्रेमचन्द हैं. जिस तरह ऊनके रचनाओं को पढ़ने में आन्नद आता है उसी तरह आपके भी..
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    Yogiraj Prajapati "Yogi"
    13 ఫిబ్రవరి 2019
    ap duniya ki sabse romantic lekhika ho....
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    29 జులై 2017
    प्रियंका जी बहुत अच्छा प्रयास। पर और अच्छी कोशिश कीजिए।
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    13 అక్టోబరు 2016
    आपकी शब्दों के प्रयोग ..वाकई में काबीलेतारीफ है. आधुनिक युग के आप प्रेमचन्द हैं. जिस तरह ऊनके रचनाओं को पढ़ने में आन्नद आता है उसी तरह आपके भी..