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कल आना

4.7
11171

यह उन दिनों की ये बात है, जब न तो टीवी होता था और न ही स्मार्टफ़ोन। सन्ध्या होते-होते घर में माँ, दादी चूल्हा सुलगा लेते थे। खाना-पीना, चौका-बर्तन करके सब जल्दी फ्री हो जाते थे। ...और तब, हर रात ...

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लेखक के बारे में
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Mukesh Ram Nagar

श्रीलक्ष्मीनारायण सदा सहाय 🙏 https://brahmanuvach.blogspot.com

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pramod Ranjan Kukreti
    12 जनवरी 2019
    बहुत खूब । अखबार के आकार का धर्मयुग हनने भी पढ़ा है ।
  • author
    Reema Bhadauria
    27 दिसम्बर 2018
    Beautiful story 😊😊
  • author
    अजय अमिताभ सुमन
    22 अक्टूबर 2018
    बहुत हीं बेहतरीन हास्य और टालमटोल करने वालों पे व्ययंग भी।
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    Pramod Ranjan Kukreti
    12 जनवरी 2019
    बहुत खूब । अखबार के आकार का धर्मयुग हनने भी पढ़ा है ।
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    Reema Bhadauria
    27 दिसम्बर 2018
    Beautiful story 😊😊
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    अजय अमिताभ सुमन
    22 अक्टूबर 2018
    बहुत हीं बेहतरीन हास्य और टालमटोल करने वालों पे व्ययंग भी।