जितनी तेज़ी से दो पटरियों पर दौड़ती रेलगाड़ी भाग रही थी, उसमें बैठे लोग भी अपने पीछे कुछ छोड़ते हुए भागे जा रहे थे और उतनी ही तेज़ी से रेलगाड़ी की खिड़की से दिखता बाहर का संसार- घर, दुकान, पेड़, जानवर, ...
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