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तितली

4.4
17687

जितनी तेज़ी से दो पटरियों पर दौड़ती रेलगाड़ी भाग रही थी, उसमें बैठे लोग भी अपने पीछे कुछ छोड़ते हुए भागे जा रहे थे और उतनी ही तेज़ी से रेलगाड़ी की खिड़की से दिखता बाहर का संसार- घर, दुकान, पेड़, जानवर, ...

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लेखक के बारे में
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विवेक मिश्र

परिचय-विवेक मिश्र 15 अगस्त 1970 को उत्तर प्रदेश के झांसी शहर में जन्म. विज्ञान में स्नातक, दन्त स्वास्थ विज्ञान में विशेष शिक्षा, पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नात्कोत्तर. तीन कहानी संग्रह- ‘हनियाँ तथा अन्य कहानियाँ’-शिल्पायन, ‘पार उतरना धीरे से’-सामायिक प्रकाशन एवं ‘ऐ गंगा तुम बहती हो क्यूँ?’- किताबघर प्रकाशन तथा उपन्यास ‘डॉमनिक की वापसी’ किताबघर प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित. 'Light through a labyrinth' शीर्षक से कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद राईटर्स वर्कशाप, कोलकाता से तथा पहले संग्रह की कहानियों का बंगला अनुवाद डाना पब्लिकेशन, कोलकाता से तथा बाद के दो संग्रहों की चुनी हुई कहानियों का बंग्ला अनुवाद भाषालिपि, कोलकाता से प्रकाशित. लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं व कहानियाँ प्रकाशित. कुछ कहानियाँ संपादित संग्रहों व स्नातक स्तर के पाठ्यक्रमों में शामिल. साठ से अधिक वृत्तचित्रों की संकल्पना एवं पटकथा लेखन. चर्चित कहानी ‘थर्टी मिनट्स’ पर ‘30 मिनट्स’ के नाम से फीचर फिल्म बनी जो दिसंबर 2016 में रिलीज़ हुई. कहानी- ‘कारा’ ‘सुर्ननोस-कथादेश पुरुस्कार-2015’ के लिए चुनी गई. कहानी संग्रह ‘पार उतरना धीरे से’ के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा वर्ष 2015 का ‘यशपाल पुरस्कार’ मिला. पहले उपन्यास ‘डॉमानिक की वापसी’ को किताबघर प्रकाशन के ‘आर्य स्मृति सम्मान-2015’ के लिए चुना गया. हिमाचल प्रदेश की संस्था ‘शिखर’ द्वारा ‘शिखर साहित्य सम्मान-2016’ दिया गया तथा ‘हंस’ में प्रकाशित कहानी ‘और गिलहरियाँ बैठ गईं..’ के लिए ‘रमाकांत स्मृति कहानी पुरस्कार- 2016’ मिला. मो-9810853128 ईमेल- [email protected]

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  • author
    Poonam Aggarwal
    23 మార్చి 2020
    विवेक जी मैंने आपकी जोकर और हनिया कहानियां भी पढ़ी हैं । यदि मैं ये कहूँ की आप कहानी को लिखते नहीं अपितु उसे मूर्तिकार की तरह बारीकी से तराशते हैं तो यह गलत नहीं होगा ।हमारी सोसायटी में अंशु जैसी न जाने कितनी लड़कियां होंगी जो सजल और उसके दोस्तों की हवस का शिकार हो जाती हैं । किन्तु यदि वह थोड़ी सी सावधानी बरतती तो इस दुर्घटना से बच सकती थी । नारी स्पर्श की भाषा पहचानती है ।जब पार्टी में अभी ने उसकी कमर में हाथ डाला था वह उसी समय विरोध कर सकती थी । माँ के मना करने के बाद भी वह सजल के साथ अकेले मिलने गई । उसे भी टाला जा सकता था । आपकी रचना में भाषा और रूपक एकदम सटीक हैं और कहानी को अपने गंतव्य तक ले जाते हैं । अंशु और सजल के एकांत क्षणों के वर्णन में कहीं भी अश्लीलता नहीं झलकती । दुर्घटना के बाद जिस प्रकार अंशु और उसके परिवार के वातावरण का आपने वर्णन किया है उससे उनके मानसिक कष्ट को सही तरीके से समझ सकते हैं । 🙏🙏
  • author
    Meena Bhatt
    13 సెప్టెంబరు 2018
    मिश्र जी बहुत बहुत बधाई एक सच्ची कहानी लिखने के लिए।शीर्षक भी बहुत अच्छा तितली।
  • author
    manish kumar
    03 ఏప్రిల్ 2017
    यह कहानी नही....कड़वा यथार्थ है।
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    Poonam Aggarwal
    23 మార్చి 2020
    विवेक जी मैंने आपकी जोकर और हनिया कहानियां भी पढ़ी हैं । यदि मैं ये कहूँ की आप कहानी को लिखते नहीं अपितु उसे मूर्तिकार की तरह बारीकी से तराशते हैं तो यह गलत नहीं होगा ।हमारी सोसायटी में अंशु जैसी न जाने कितनी लड़कियां होंगी जो सजल और उसके दोस्तों की हवस का शिकार हो जाती हैं । किन्तु यदि वह थोड़ी सी सावधानी बरतती तो इस दुर्घटना से बच सकती थी । नारी स्पर्श की भाषा पहचानती है ।जब पार्टी में अभी ने उसकी कमर में हाथ डाला था वह उसी समय विरोध कर सकती थी । माँ के मना करने के बाद भी वह सजल के साथ अकेले मिलने गई । उसे भी टाला जा सकता था । आपकी रचना में भाषा और रूपक एकदम सटीक हैं और कहानी को अपने गंतव्य तक ले जाते हैं । अंशु और सजल के एकांत क्षणों के वर्णन में कहीं भी अश्लीलता नहीं झलकती । दुर्घटना के बाद जिस प्रकार अंशु और उसके परिवार के वातावरण का आपने वर्णन किया है उससे उनके मानसिक कष्ट को सही तरीके से समझ सकते हैं । 🙏🙏
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    Meena Bhatt
    13 సెప్టెంబరు 2018
    मिश्र जी बहुत बहुत बधाई एक सच्ची कहानी लिखने के लिए।शीर्षक भी बहुत अच्छा तितली।
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    manish kumar
    03 ఏప్రిల్ 2017
    यह कहानी नही....कड़वा यथार्थ है।