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कहानी- काकी का घर

4.8
69

उम्र के साथ साथ घर के बुजुर्ग कैसे घर के लिए अनावश्यक हो जातें है।वृद्ध मां के प्रति बच्चों की उदासीनता दिखाती एक कहानी।

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लेखक के बारे में
author
Manmohan Krishan

मै एक सरकारी बैंक से रिटायर्ड सीनियर मैनजर हुँ।वर्तमान में सामाजिक सेवा में व्यस्त रहता हूँ।जरूरतमंद बच्चों को जर्सी स्वेटर बाँटना,कम्बल बाँटना,स्कूलों में ठंडे पानी के लिए वाटर कूलर लगाना,विभिन्न आश्रमो में भोजन करवाना,गऊ शाला में सेवा आदि विभिन्न कार्य कर रहा हूँ।अभी श्री गंगानगर(राजस्थान) में ग्यारह मूखी श्री हनुमान जी का एक भव्य मंदिर बनवाया है,उसकी देखरेख भी सम्भाल रखी है।मैं मनमोहन कृष्ण "भगत जी" के नाम से रचनाएं लिखता हूँ।शीघ्र ही एक कविता संग्रह छपवाने का विचार है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Ashish Agrawal
    30 मई 2020
    बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है
  • author
    Mamta Puri
    30 मई 2020
    बहुत मार्मिक कहानी। आजकल बड़े बुजुर्ग फालतू सामान की तरह बेकार स्टोर रूम में ही रख दिए जाते हैं। लेकिन जिन भी घरों में हो रहा है वो भूल कर रहें हैं कि वक्त का पहिया घूमता है,सदा जवां रहने का स्टांप किसी के भी नहीं लगा, ये वक्त देर सवेर सब पर आयेगा।
  • author
    मीनाक्षी आहुजा
    31 मई 2020
    कहानी एक आत्म प्रसंग लग रही है। ऐसी काकियाँ बहुत मिल जाएंगी,,पर सब को ऐसे स्नेह भरे रिश्ते नहीं मिलते। यह कहानी कम आत्मकथा का अंश अधिक लगा।
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    Ashish Agrawal
    30 मई 2020
    बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है
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    Mamta Puri
    30 मई 2020
    बहुत मार्मिक कहानी। आजकल बड़े बुजुर्ग फालतू सामान की तरह बेकार स्टोर रूम में ही रख दिए जाते हैं। लेकिन जिन भी घरों में हो रहा है वो भूल कर रहें हैं कि वक्त का पहिया घूमता है,सदा जवां रहने का स्टांप किसी के भी नहीं लगा, ये वक्त देर सवेर सब पर आयेगा।
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    मीनाक्षी आहुजा
    31 मई 2020
    कहानी एक आत्म प्रसंग लग रही है। ऐसी काकियाँ बहुत मिल जाएंगी,,पर सब को ऐसे स्नेह भरे रिश्ते नहीं मिलते। यह कहानी कम आत्मकथा का अंश अधिक लगा।