pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

तस्सवुर बढ़ीं ही नहीं...

4.7
13

तस्सवुर बढ़ीं ही नहीं बीते लम्हों के तुम्हारे, मैं गुज़ारता जिंदगी लिखें नज़्मों के सहारे। रातों में दिखते दूर दरख़्तों के काले-काले पहाड़, दुश्वारियां झेली ही नहीं बैठा सिर्फ नदी के किनारे। ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
Sourav Poem
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Aashnaafroz
    29 अगस्त 2019
    बहोत खूब👏👏 न जानू कुछ समझ भी आया या नही, बस कुछ पाया इन लफ़्ज़ों मैं आपके सहारे.....
  • author
    Sneha
    29 अगस्त 2019
    वाह बहुत खूब फरमाया आपने 👌
  • author
    Barkat Sahra "सहरा"
    29 अगस्त 2019
    Nice👌👌👌👌
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Aashnaafroz
    29 अगस्त 2019
    बहोत खूब👏👏 न जानू कुछ समझ भी आया या नही, बस कुछ पाया इन लफ़्ज़ों मैं आपके सहारे.....
  • author
    Sneha
    29 अगस्त 2019
    वाह बहुत खूब फरमाया आपने 👌
  • author
    Barkat Sahra "सहरा"
    29 अगस्त 2019
    Nice👌👌👌👌