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तन्हाई चीखती है कहीं

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तन्हाई चीखती है कहीं! पगलाई-सी हवा धमक पड़ती है । अंधेरे में भी दरवाजे तक पहुँच कर बेतहाशा कुंडियाँ खटखटाती है। अकेला सोया पड़ा इंसान अपने ही भीतर हो रहे शोर से घबड़ा कर उठ बैठता है । चौंक कर ...

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लेखक के बारे में
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महिमा श्री

शिक्षा :- एम.सी.ए, एम जे. लेखन विधाएँ :- अतुकांत कविताएँ, ग़ज़ल, दोहें, कहानी, यात्रा-वृतांत, सामाजिक विषयों पर आलेख , समीक्षा साहित्यिक गतिविधियाँ:-एकल काव्यसंकलन अकुलाहटें मेरे मन की, अंजुमन प्रकाशन 2015, साझा काव्य संकलन “त्रिसुन्गंधी” , “परों को खोलते हुए-१”, “ सारांश समय का” , “काव्य सुगंध -2” “कविता अनवरत-3” में रचनाएँ शामिल, देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में यथा सदानीरा, सप्तपर्णी, सुसम्भाव्य,आधुनिक साहित्य ,अंजुमन ,अटूटबंधन, खुशबू मेरे देश की, इ-पत्रिका- शब्द व्यंजना, जय-विजय आदि में रचनाएँ प्रकाशित, अंतर्जाल और गोष्ठीयों में साहित्य सक्रियता , सामाजिक कार्यों में सहभागिता सम्प्रति :पब्लिक सेक्टर में सात साल काम करने के बाद (मार्च २००७-अगस्त २०१४) वर्तमान में स्वतंत्र लेखन, पत्रकारिता , नई दिल्ली Blogs:www.mahimashree.blogspots.in  

समीक्षा
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  • author
    Raman Raj
    02 सितम्बर 2021
    बहुत गूढ़ अर्थ के साथ वर्तमान माहौल को उजागर किया है आपने
  • author
    Dushyant Singh
    24 जनवरी 2018
    आपकी रचना बड़ी उत्तम है,,,एक दम ह्रदय स्पर्शी
  • author
    Manjit Singh
    24 अक्टूबर 2020
    बहुत प्यारी सत्य कविता,आभार
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    Raman Raj
    02 सितम्बर 2021
    बहुत गूढ़ अर्थ के साथ वर्तमान माहौल को उजागर किया है आपने
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    Dushyant Singh
    24 जनवरी 2018
    आपकी रचना बड़ी उत्तम है,,,एक दम ह्रदय स्पर्शी
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    Manjit Singh
    24 अक्टूबर 2020
    बहुत प्यारी सत्य कविता,आभार