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दिल्ली का धोबी

4.0
20504

गांव के बीचोबीच एक बड़ा सा हवेलीनुमा मकान था, जिसकी गिरती हुई स्थिति से उसके मालिक शिबो बाबू की स्थिति का भी अंदाजा सहज ही लग जाता था. हवेली का पश्चिमी हिस्सा पूरी तरह से गिर चुका था. गिरे हुए हिस्से ...

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लेखक के बारे में
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नीरज नीर

मैं एक कवि एवं कहानीकार हूँ . मुझे अच्छा पढ़ना भी खूब भाता है . प्रकाशित काव्य संकलन : "जंगल में पागल हाथी और ढोल" , "पीठ पर रोशनी" कहानी संकलन : "ढुकनी एवं अन्य कहानियाँ" . सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में सैकड़ों कवितायें एवं दर्जनों कहानियाँ प्रकाशित। सृजनलोक कविता सम्मान, प्रथम महेंद्र प्रताप स्वर्ण साहित्य सम्मान, ब्रजेन्द्र मोहन स्मृति साहित्य सम्मान, सूरज प्रकाश मारवाह साहित्य रत्न आदि से सम्मानित ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Dr Kamal Satyarthi
    05 जनवरी 2019
    Beautiful. We mut change ourselves with time. Survival of the fittest is the rule.
  • author
    Vrunda H. Goud
    01 जनवरी 2019
    भूखे भजन ना होय गोपाला।। वैसे ही झूठी प्रतिष्ठा किसी का परिवार नही पालती।।
  • author
    Vimal Shukla
    14 अक्टूबर 2018
    कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता यह धीरे धीरे ही सही लोगों को समझ में आ रहा है।
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    Dr Kamal Satyarthi
    05 जनवरी 2019
    Beautiful. We mut change ourselves with time. Survival of the fittest is the rule.
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    Vrunda H. Goud
    01 जनवरी 2019
    भूखे भजन ना होय गोपाला।। वैसे ही झूठी प्रतिष्ठा किसी का परिवार नही पालती।।
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    Vimal Shukla
    14 अक्टूबर 2018
    कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता यह धीरे धीरे ही सही लोगों को समझ में आ रहा है।