pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

स्यानी बिटिया

4.5
945

वो अपनी ज़िदों से परे हटी है मंजिलों से अपनी खुद ही कटी है वो सपने अपने खुद तोड़ने लगी है और परछाइयाँ भी पीछे छोड़ने लगी है वो हँसती है अब औरों के लिए अपनी खिलखिलाहट वो खोने लगी है वो अंदर से ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में

वो लिखती हूँ जो जिया है । उनके लिए लिखती हूँ जो जीती हैं पर लिख नहीं पाती । और लिखती हूँ शायद इसलिए जी रही हूँ । उम्मीद है जब तक जिऊँ , लिखती रहूँ :)

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Naveen Pawar
    22 जनवरी 2022
    आदरणीया महोदया जी आपकी कवितावली बहुत खुबसुरत होती है उपयुक्तता लफ्ज दिल की गहराई मे अमिट छाप छोड जाते है
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    21 सितम्बर 2022
    यथार्थ प्रस्तुत करती सुन्दर अभिव्यक्ति । हार्दिक साधुवाद
  • author
    मल्हार
    01 जून 2020
    स्नेह भाव से सजी सुंदर रचना 👌👌
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Naveen Pawar
    22 जनवरी 2022
    आदरणीया महोदया जी आपकी कवितावली बहुत खुबसुरत होती है उपयुक्तता लफ्ज दिल की गहराई मे अमिट छाप छोड जाते है
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    21 सितम्बर 2022
    यथार्थ प्रस्तुत करती सुन्दर अभिव्यक्ति । हार्दिक साधुवाद
  • author
    मल्हार
    01 जून 2020
    स्नेह भाव से सजी सुंदर रचना 👌👌