आज यूँ ही लगा कि इंसान के पास कितनी तरह के दुःख होते हैं, हर दुःख किसी एक कंधे पर सिर रख कर नहीं रोया जा सकता। हर व्यक्ति की सेंसिबिलिटी अलग होती है जो हमारे अलग-अलग मूड्स के साथ मैच करती है. यूँ ही आज मन है, अपने फेसबुक मित्रों को याद करने का. फेसबुक के अलावा इस वास्तविक संसार में मेरा बस परिवार मेरा मित्र है या मेरे कर्मचारी। परिवार में मैं बॉबी, बरखा और मनु से अपनी बात कह पाती हूँ. मनु के आगे, लगता है, दिल के सारे राज़ खोल कर रख दूँ. कर्मचारि सम्वेदनशील हैं, लेकिन उनके साथ दिल की बातें? कदापि ...