बचपन से किताबें पढ़ने एवं उनकी समीक्षा का पारिवारिक माहौल था, समय के साथ पुलिस विभाग में प्रशासनिक पद पर पदस्थापना एवं दिन रात जनसेवा एवं कानून व्यवस्था एवं आपराधिक गतिविधियों पर निगाह एवं नियंत्रण रखने के व्यस्त कार्यक्रम के बाद रात्रि में जब भी समय मिल जाता है तो पठन-पाठन का शौक पूरा करने का अवसर निकाल लेते है,
पुराने लेखको की करीब-करीब सभी किताबों को पढ़ने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है, अभी भी दैनिक भास्कर की पत्रिका अहा ज़िंदगी एवं सरिता का नियमित पाठक हूँ, समय के साथ प्रतिलिपि एप पर नई-नई कहानियों को पढ़ने का मौका मिल जाता है, प्रतिभाओं के निखार में प्रतिलिपि टीम काफी प्रसंसनीय कार्य कर रही है,
पूरी टीम, सम्पादकीय मंडल एवं नवोदित लेखको को बधाई एवं शुभकामनाएं,
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