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स्वयमेव-मृगेन्द्रता

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स्वयमेव मृगेन्द्रता, नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते   वने। विक्रमार्जितसत्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥ बडा बढाई न करे, बडा न बोले बोल। रहिमन हीरा कब कहे, लाख टके मैरा मोल।। जंगल में शेर का ...

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लेखक के बारे में
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SATISH SAXENA

बचपन से किताबें पढ़ने एवं उनकी समीक्षा का पारिवारिक माहौल था, समय के साथ पुलिस विभाग में प्रशासनिक पद पर पदस्थापना एवं दिन रात जनसेवा एवं कानून व्यवस्था एवं आपराधिक गतिविधियों पर निगाह एवं नियंत्रण रखने के व्यस्त कार्यक्रम के बाद रात्रि में जब भी समय मिल जाता है तो पठन-पाठन का शौक पूरा करने का अवसर निकाल लेते है, पुराने लेखको की करीब-करीब सभी किताबों को पढ़ने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है, अभी भी दैनिक भास्कर की पत्रिका अहा ज़िंदगी एवं सरिता का नियमित पाठक हूँ, समय के साथ प्रतिलिपि एप पर नई-नई कहानियों को पढ़ने का मौका मिल जाता है, प्रतिभाओं के निखार में प्रतिलिपि टीम काफी प्रसंसनीय कार्य कर रही है, पूरी टीम, सम्पादकीय मंडल एवं नवोदित लेखको को बधाई एवं शुभकामनाएं,

समीक्षा
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    meenakshi saxena
    04 जुलाई 2020
    बिल्कुल सही,
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    meenakshi saxena
    04 जुलाई 2020
    बिल्कुल सही,