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सूरज पीछे पीछे आया था

4.2
947

देखो निकल गया ना दिन.. तुम आये हँसे मुस्कुराये, बतियाये और चलते बने.. मैं भी अपने दुपट्टे में उलझी तेज़ रफ़्तार कट ली, तुम्हारे ठीक नज़र के नीचे से.. देखा तुमने !!!!.. वो सूरज पीछे पीछे आया था बड़ी दूर ...

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लेखक के बारे में

मैं उज्जैन की रहने वाली हूँ ,मेरे माता पिता का नाम श्री रमेश भावसार और श्रीमती शकुंतला भावसार है। मैंने जावरा पॉलिटेक्निक से इलेक्ट्रिकल विषय में डिप्लोमा व , साहित्य में रूचि होने के कारण मैंने हिंदी साहित्य में पार्ट टाइम एम.ए. भी किया है। फ़िलहाल कंस्ट्रक्शन कंपनी में कार्यरत हूँ। लेखन कार्य शौकिया तौर पर करती हूँ। मुझे पढ़ना बहुत पसंद है , वैसे ज़्यादातर मुझे ग़ज़लें पढ़ने का शौक है। बशीर साब और दुष्यंतकुमार मेरे पसंदीदा शायर हैं। बाकी मुझे सबकुछ पढ़ना अच्छा लगता है। जो भी दिल को छू जाए , वो मेरा पसंदीदा हो जाता है।

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Manjit Singh
    18 जुलाई 2020
    kavita. mei ok hai. God bless you millions of times
  • author
    TEJRAJ GEHLOTH
    16 अक्टूबर 2015
    बहुत ही खूबसूरत कविता और आखिर की 2 lines बहुत सच्ची 
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    16 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का कम ध्यान रखती है । मध्यम स्तर की कविता ।
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    Manjit Singh
    18 जुलाई 2020
    kavita. mei ok hai. God bless you millions of times
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    TEJRAJ GEHLOTH
    16 अक्टूबर 2015
    बहुत ही खूबसूरत कविता और आखिर की 2 lines बहुत सच्ची 
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    16 अक्टूबर 2015
    राष्ट्र भाषा का कम ध्यान रखती है । मध्यम स्तर की कविता ।