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सुहागरात

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जैसे ही करीब आकर के मैंने, घूँघट तेरा उठा दिया। देख के तुमको लगा के जैसे, घटा से चाँद आ ही गया।। देख के लगता आँखों में तेरी, जैसे पतझड़ आया है। पाते ही आलिंगन मेरा, बसंत दौड़ा चला आया है।। रात्रि ...

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लेखक के बारे में
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आलोक निगम
समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Shilpi Hindu
    02 मार्च 2021
    ❤️Awesome ❤️ just mind blowing❤️
  • author
    Manu Maverick
    02 मार्च 2021
    bhot badhiya likha hai alok sir
  • author
    Stuti Bansal
    02 मार्च 2021
    लेखक की कल्पना और शब्दों का चयन
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    Shilpi Hindu
    02 मार्च 2021
    ❤️Awesome ❤️ just mind blowing❤️
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    Manu Maverick
    02 मार्च 2021
    bhot badhiya likha hai alok sir
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    Stuti Bansal
    02 मार्च 2021
    लेखक की कल्पना और शब्दों का चयन