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सुधार

4.1
1156

मन्दिर आते जाते गोपाल बाबू अक्सर बगीचे के पास ठिठक जाते थे जो मन्दिर के रास्ते में पड़ता था। रंगबिरंगे सुन्दर फूल उन्हें जितना आकर्षित करते थे।वहाँ लगी तख्ती उनकी आँखों को उतना ही खटकती थी। न चाहते ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    BHUSHAN KHARE
    06 മെയ്‌ 2018
    लेखनी का प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है.
  • author
    सुनील चंद्र
    13 ജൂണ്‍ 2020
    सुधार के लिये जहाँ चाह वहाँ राह
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    23 നവംബര്‍ 2019
    अत्यन्त ही प्रेरक कहानी ।
  • author
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    BHUSHAN KHARE
    06 മെയ്‌ 2018
    लेखनी का प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय है.
  • author
    सुनील चंद्र
    13 ജൂണ്‍ 2020
    सुधार के लिये जहाँ चाह वहाँ राह
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    23 നവംബര്‍ 2019
    अत्यन्त ही प्रेरक कहानी ।