सुबह -ए -बनारस ,शाम -ए -अवध वो अदब ,वो तहजीब... वो ठंडी हवा की बहार हो तुम , हो गजल तुम उर्दू की..... शाम- ए- अवध, मेरा संसार हो तुम। गंगा नदी सी पवित्र ..... सनातन -ए-संस्कार हो तुम , हो ...
शहद की मधुरता भी फीकी लगी आपकी इस मधुर रचना के सामने।बहुत-बहुत सुन्दर शब्दों की माला और पंक्तियों की कडियाँ अति मनभावनी और सरसता उत्पन्न करती है आपकी रचना मे।आप कहाँ चली गयी थी आपका अभाव सदा खटकता रहा।बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं भी आदरणीया ।
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