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सुबह-ए- बनारस ,शाम -ए- अवध

4.6
72

सुबह -ए -बनारस ,शाम -ए -अवध वो अदब ,वो तहजीब... वो ठंडी हवा की बहार हो तुम , हो गजल तुम उर्दू की..... शाम- ए- अवध, मेरा संसार हो तुम। गंगा नदी सी पवित्र ..... सनातन -ए-संस्कार हो तुम , हो ...

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लेखक के बारे में
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अंजली सिंह

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समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

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  • author
    Rocky Patel
    09 अगस्त 2020
    super 👌👌
  • author
    10 अगस्त 2020
    शहद की मधुरता भी फीकी लगी आपकी इस मधुर रचना के सामने।बहुत-बहुत सुन्दर शब्दों की माला और पंक्तियों की कडियाँ अति मनभावनी और सरसता उत्पन्न करती है आपकी रचना मे।आप कहाँ चली गयी थी आपका अभाव सदा खटकता रहा।बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं भी आदरणीया ।
  • author
    Amarnath Srivastava
    11 अगस्त 2020
    क्या बात है.. सुबह-ए-शाम और शाम-ए-अवध , बहुत सुंदर वर्णन!
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    Rocky Patel
    09 अगस्त 2020
    super 👌👌
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    10 अगस्त 2020
    शहद की मधुरता भी फीकी लगी आपकी इस मधुर रचना के सामने।बहुत-बहुत सुन्दर शब्दों की माला और पंक्तियों की कडियाँ अति मनभावनी और सरसता उत्पन्न करती है आपकी रचना मे।आप कहाँ चली गयी थी आपका अभाव सदा खटकता रहा।बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं भी आदरणीया ।
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    Amarnath Srivastava
    11 अगस्त 2020
    क्या बात है.. सुबह-ए-शाम और शाम-ए-अवध , बहुत सुंदर वर्णन!