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सुबह

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सुबह, मुक्त करा देती है हमें,रात के अंधकार से । दिन की रोशनी में मिलाती, कुदरती फनकार से । दिन के ढलते रोशनी को छीनती शाम यूँ लगती । जैसे छिन गई हो कुची, चित्र बनाते चित्रकार से । छोटे लाल शुक्ल ...

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लेखक के बारे में
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Chhotelal Shukla

मैं सेवा निवृत्त शिक्षक हूँ । व्याख्याता पद से सेवानिवृत्त होने के बाद स्वाध्याय में मेरी विशेष रुचि है । मुझे आध्यात्मिक विचार धारा के व्यक्ति अधिक पसंद हैं । मैं स्वयं कष्ट झेल कर , दूसरों में खुशियाँ बाँट कर , सुख का अनुभव करने में विश्वास रखना चाहता हूँ ।जीवन के शेष बचे हुए दिन ईश्वर का सानिध्य प्राप्त करने में लगाना चाहता हूँ ।

समीक्षा
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    kanhaiya khatri (. K. K .)
    03 मई 2025
    वाह लाजवाब पंक्तियां 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
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    03 मई 2025
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