चली जब जानकी , फिर धरती माँ के घर, राम कहें कैसे रहूं , अब इस धरा पर। जहाँ नहीं मेरी वैदिही, कैसे वहाँ निवास करू, जिस वायु में ना सीता सुंगंध, कैसे मैं फिर श्वास भरूँ। मेरी छोटी सी भूल का दंड बड़ा ...
बहुत ही मार्मिक पहलू था वह जब सीता मां धरती में समाई थी। यदि प्रभु की लीला ( समाज के लिए) को परे रख दें तो ये बहुत ही गलत हुआ था। क्यो सिर्फ स्त्री ही परीक्षा दे।
आपने श्रीराम जी के दुख को सही से फिल्माया है। बहुत खूब।
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