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सिया - राम

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चली जब जानकी , फिर धरती माँ के घर, राम कहें कैसे रहूं , अब इस धरा पर।   जहाँ नहीं  मेरी वैदिही, कैसे वहाँ निवास करू, जिस वायु में ना सीता सुंगंध, कैसे मैं फिर श्वास भरूँ। मेरी छोटी सी भूल का दंड बड़ा ...

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लेखक के बारे में
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Jaya Mallick

खुशबू जैसे लोग मिले अफसाने में, एक पुराना खत खोला अनजाने में।

समीक्षा
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    शैलेश सिंह "शैल"
    04 जून 2020
    बहुत ही मार्मिक पहलू था वह जब सीता मां धरती में समाई थी। यदि प्रभु की लीला ( समाज के लिए) को परे रख दें तो ये बहुत ही गलत हुआ था। क्यो सिर्फ स्त्री ही परीक्षा दे। आपने श्रीराम जी के दुख को सही से फिल्माया है। बहुत खूब।
  • author
    01 जून 2020
    बेहतरीन अभिव्यक्ति।👌
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    शैलेश सिंह "शैल"
    04 जून 2020
    बहुत ही मार्मिक पहलू था वह जब सीता मां धरती में समाई थी। यदि प्रभु की लीला ( समाज के लिए) को परे रख दें तो ये बहुत ही गलत हुआ था। क्यो सिर्फ स्त्री ही परीक्षा दे। आपने श्रीराम जी के दुख को सही से फिल्माया है। बहुत खूब।
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    01 जून 2020
    बेहतरीन अभिव्यक्ति।👌