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सितम के फ़नकार

4.1
10004

खाने की मेज़ के पास, जिस कुर्सी पर मैं बैठी थी या कहना चाहिए कि जिस कुर्सी पर, बतौर हिन्दुस्तान से आए मेहमान, इसरार करके जीवन वर्मा ने मुझे बिठलाया था, उसके ठीक सामने, दीवार पर एक लम्बा-चौड़ा चित्र ...

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लेखक के बारे में
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मृदुला गर्ग

जन्म : 25 अक्तूबर 1938, कोलकाताभाषा : हिंदीविधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, व्यंग्य, निबंध, यात्रा वृत्तांतमुख्य कृतियाँउपन्यास : उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, मैं और मैं, कठगुलाब, मिलजुल मन कहानी संग्रह : कितनी क़ैदें, टुकड़ा-टुकड़ा आदमी, डैफ़ोडिल जल रहे हैं, ग्लेशियर से, उर्फ सैम, शहर के नाम, समागम, मेरे देश की मिट्टी अहा, संगति-विसंगति (दो खंडों में 2003 तक की संपूर्ण कहानियाँ), मीरा नाची (स्त्री मन की कहानियाँ), जूते का जोड़ गोभी का तोड़, मृदुला गर्ग की संकलित कहानियाँ निबंध : रंग ढंग, चुकते नहीं सवालव्यंग्य : कर लेंगे सब हज़म, खेद नहीं हैयात्रा वृत्तांत : कुछ अटके कुछ भटकेनाटक : एक और अजनबी, जादू का कालीन, कितनी कैदेसम्मानसाहित्य अकादमी पुरस्कार , साहित्यकार सम्मान, साहित्य भूषण, महाराज वीरसिंह सम्‍मान, सेठ गोविंद दास सम्मान, व्यास सम्मान, स्पंदन कथा शिखर सम्मान, हैलमन-हैमट ग्रांट

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  • author
    Dipti Biswas
    04 অগাস্ট 2018
    i cant belive mem आप मुझे इस तरह प्रतिलिपि में मिलेंगी मैं अपनी दसवीं की की कृतिका किताब में मैंने आपकी रचना मेरे संग की औरतें पढ़ी 2012 में मैंने ये किताब पढ़ी थी यकीन मानिए ये किताब आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं आपकी वो रचना बहुत कुछ समझाती हैं खासकर एक स्त्री की जिवनी का शानदार वर्णन कैसे घर में रहकर भी अपने तरीके से आपकी नानी ने आजादी का साथ दिया और आपकी माँ के विचार आपकी बहनो का व्यक्तित्व हर एक के व्यवहार से कुछ न कुछ सीखने को मिलता हैं । मैं बहुत इच्छा हैं मेम आपसे जुड़ पाऊं। ये मेरा नंबर हैं कृपया एक बार मुझसे संपर्क अवश्य करें मेरा जीवन और मेरी कलम सार्थक हो जाएंगी
  • author
    Arpita Bhattacharya
    14 জুলাই 2018
    बहुत ही सुंदर। सबसे अलग! उम्दा
  • author
    अंजली भार्गव
    27 জুলাই 2018
    achhi kahani me se ek. read this also"चश्मिस", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/sxwWCf2AGH3I
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    Dipti Biswas
    04 অগাস্ট 2018
    i cant belive mem आप मुझे इस तरह प्रतिलिपि में मिलेंगी मैं अपनी दसवीं की की कृतिका किताब में मैंने आपकी रचना मेरे संग की औरतें पढ़ी 2012 में मैंने ये किताब पढ़ी थी यकीन मानिए ये किताब आज भी मेरे पास सुरक्षित हैं आपकी वो रचना बहुत कुछ समझाती हैं खासकर एक स्त्री की जिवनी का शानदार वर्णन कैसे घर में रहकर भी अपने तरीके से आपकी नानी ने आजादी का साथ दिया और आपकी माँ के विचार आपकी बहनो का व्यक्तित्व हर एक के व्यवहार से कुछ न कुछ सीखने को मिलता हैं । मैं बहुत इच्छा हैं मेम आपसे जुड़ पाऊं। ये मेरा नंबर हैं कृपया एक बार मुझसे संपर्क अवश्य करें मेरा जीवन और मेरी कलम सार्थक हो जाएंगी
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    Arpita Bhattacharya
    14 জুলাই 2018
    बहुत ही सुंदर। सबसे अलग! उम्दा
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    अंजली भार्गव
    27 জুলাই 2018
    achhi kahani me se ek. read this also"चश्मिस", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/sxwWCf2AGH3I