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सिर्फ़ एक दिन

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सिर्फ़ एक दिन उसने खिड़की की सींखचों से अपना चेहरा सटाया और तेज हवाओं के झोंके उसके चेहरे से टकराने लगे ..बाहर सब –कुछ अजनबी पर जाना पहचाना था ...विपरीत दिशा में भागते पेड़ ,मैदान ,फसलें ,जानवर ,नदियाँ ...

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लेखक के बारे में
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जया जदवानी

जन्म – 1 मई १९५९ को कोतमा ,जिला –शहडोल [मध्यप्रदेश ] शिक्षा – एम. ए. हिंदी और मनोविज्ञान रुचियां – जीवन के रहस्यों और दुर्लभ पुस्तकों का अध्ययन ....यायावरी ,दर्शन और मनोविज्ञान में विशेष रूचि ...... कृतियाँ :- कविता संग्रह : मैं शब्द हूँ अनंत संभावनाओं के बाद भी उठाता है कोई एक मुठ्ठी ऐश्वर्य कहानी संग्रह : 1 : मुझे ही होना है बार –बार 2 : अन्दर के पानियों में कोई सपना कांपता है 3 : उससे पूछो 4 : मैं अपनी मिट्टी में खडी हूँ कांधे पे अपना हल लिये 5 : समन्दर में सूखती नदी [ प्रतिनिधि कहानी संग्रह ] 6 : बर्फ़ जा गुल [ सिन्धी कहानी संग्रह ] 7 : खामोशियों के देश में [ सिन्धी कहानी संग्रह ] 8 : ये कथाएं सुनाई जाती रहेंगी हमारे बाद भी [प्रतिनिधि कहानी संग्रह] उपन्यास : 1: तत्वमसि 2: कुछ न कुछ छूट जाता है 3 : मिठो पाणी खारो पाणी [ सिन्धी में भी प्रकाशित ] अन्य : ‘’अन्दर के पानियों में कोई सपना कांपता है ‘’पर ‘इंडियन क्लासिकल’ के अंतर्गत एक टेलीफिल्म का निर्माण अनेक रचनाओं का अंग्रेजी ,उर्दू ,पंजाबी ,उड़िया ,सिन्धी ,मराठी ,बंगाली भाषाओँ में अनुवाद... एक कविता सी.बी.एस.सी ८ में चयनित ‘’इतना कठिन समय नहीं ‘’ हिमालय की यात्रायें .... लद्दाख पर यात्रा वृतान्त......... मुक्तिबोध सम्मान...... कहानियों पर गोल्ड मैडल .......

समीक्षा
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    14 सितम्बर 2017
    kaya batau is Kahani ke Ware me jitna kanhu kam hai. Payar ko pana aaur pa kar kho Dena zindgi bhar ki yaad rah jati hai .
  • author
    अजीत@आनन्द
    22 नवम्बर 2019
    बहुत सुंदर रचना है। मरहूम राजेन्द्र यादव मेरे साहित्यिक गुरू रहे हैं। आश्चर्य है कि उन्हें गिरीश नामक पात्र क्यों हजम नही हुआ। कहानी एक बहुत ही बोल्ड कहानी है। प्रगतिशीलता का नवबिंदू है। इस तरह की मोहब्बत में तो खतरे दोनों ने बराबर ही उठाए हैं। कुंवारी लड़की जहां अपना सबकुछ कौमार्य लुटाकर खुश है वहीं शादीशुदा पुरुष अपनी प्रेम की इच्छाएं पूरी कर। बर्बादी दोनों की होनी तय है। इस पर मिर्ज़ा गालिब साहब का शेर सटीक है। यह इश्क नहीं आशा, यह आग का दरिया है और डूब कर जाना है। और कबीर दास का एक दोहा- जिन खोजा तिन पाईया गहरे पानी पैठ।मै बपुरा बुड़न डरा रहा किनारे बैठि।। बहुत सुंदर रचना।
  • author
    20 सितम्बर 2021
    कहानी अच्छी लगी,जिसे कहानी तक ही सीमित होनाचहिये।यदि इस कहानी के अनुकूल कोई अपने जीवन को अशांत और दुखदायी बनाना चाहे तो फिर इस कहानी का अनुशरण कर सकते है।समाज और परिवार भी कोई जिसके अंतर्गत रहने के लिए कुछ कायदे और नियम है,जिसके तहत हमें चलना शोभा देता है।बस इतना ही।
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    14 सितम्बर 2017
    kaya batau is Kahani ke Ware me jitna kanhu kam hai. Payar ko pana aaur pa kar kho Dena zindgi bhar ki yaad rah jati hai .
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    अजीत@आनन्द
    22 नवम्बर 2019
    बहुत सुंदर रचना है। मरहूम राजेन्द्र यादव मेरे साहित्यिक गुरू रहे हैं। आश्चर्य है कि उन्हें गिरीश नामक पात्र क्यों हजम नही हुआ। कहानी एक बहुत ही बोल्ड कहानी है। प्रगतिशीलता का नवबिंदू है। इस तरह की मोहब्बत में तो खतरे दोनों ने बराबर ही उठाए हैं। कुंवारी लड़की जहां अपना सबकुछ कौमार्य लुटाकर खुश है वहीं शादीशुदा पुरुष अपनी प्रेम की इच्छाएं पूरी कर। बर्बादी दोनों की होनी तय है। इस पर मिर्ज़ा गालिब साहब का शेर सटीक है। यह इश्क नहीं आशा, यह आग का दरिया है और डूब कर जाना है। और कबीर दास का एक दोहा- जिन खोजा तिन पाईया गहरे पानी पैठ।मै बपुरा बुड़न डरा रहा किनारे बैठि।। बहुत सुंदर रचना।
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    20 सितम्बर 2021
    कहानी अच्छी लगी,जिसे कहानी तक ही सीमित होनाचहिये।यदि इस कहानी के अनुकूल कोई अपने जीवन को अशांत और दुखदायी बनाना चाहे तो फिर इस कहानी का अनुशरण कर सकते है।समाज और परिवार भी कोई जिसके अंतर्गत रहने के लिए कुछ कायदे और नियम है,जिसके तहत हमें चलना शोभा देता है।बस इतना ही।