कवि स्वप्न टूटटा, उठ लिख फिर सो जाता है
दीवा स्वप्न नहीं भाता, कटु सत्य तक कहता है
भयम्-भयानाम्, भीषणम्-भीषणानाम् उचरता है
गढ़ता नहीं कुछ सोंच कर भाव लेखनी में बसता है
कवि विशुद्ध चक्र जागृत कर "त्रिकालदर्शी" बनता है
सहृदय श्रोताओं का हर दुख हरता- अश्रुपूरित करता है
सृजन में आदि और अंत समाविष्ट कर अमर बनता है
🙏🙏🙏🙏🔱डॉक्टर कवि कुमार निर्मल🔱🙏🙏🙏🙏
सारांश
कवि स्वप्न टूटटा, उठ लिख फिर सो जाता है
दीवा स्वप्न नहीं भाता, कटु सत्य तक कहता है
भयम्-भयानाम्, भीषणम्-भीषणानाम् उचरता है
गढ़ता नहीं कुछ सोंच कर भाव लेखनी में बसता है
कवि विशुद्ध चक्र जागृत कर "त्रिकालदर्शी" बनता है
सहृदय श्रोताओं का हर दुख हरता- अश्रुपूरित करता है
सृजन में आदि और अंत समाविष्ट कर अमर बनता है
🙏🙏🙏🙏🔱डॉक्टर कवि कुमार निर्मल🔱🙏🙏🙏🙏
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