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शिष्टाचार

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ऐतिहासिक

"क्या हिन्दू कॉलेज के प्रिंसिपल श्रीमान कर्र भीतर हैं?" "जी। वे अंदर ही है।" चपरासी ने जवाब दिया। "उनसे कहिए कि संस्कृत कॉलेज के प्रिंसिपल ईश्वरचंद्र विद्यासागर उनसे मिलना चाहते हैं।" "जी साहब।" ...

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लेखक के बारे में
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क्षितिज जैन

अपने साहित्य सृजन से रचनाधर्म निभाने वाला अनघ का एक योद्धा नाम- क्षितिज जैन  जन्म दिनांक- 15 फरवरी 2003 पिता का नाम - श्रीमान रोहन जैन  माता का नाम- श्रीमती निवेदिता जैन वर्तमान कार्य- कक्षा बारहवीं में अध्ययन  प्रकाशित रचनाएँ - 1 अमृत राजस्थान नामक साप्ताहिक पत्र में कौटिल्य नामक उपन्यास का                             प्रकाशन                             2 जगमग दीपज्योति पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित                            3 दैनिक युगपक्ष, बीकनेर में रचनाएँ प्रकाशित                            4 दो पुस्तकों जीवन पथ और क्षितिजारूण का प्रकाशन  5 हिंदीभाषा.कॉम पर रचनाएं प्रकाशित 6 जैन पत्रिकाओं में प्रकाशन रूचि -   साहित्य सृजन एवं पठन, जैन दर्शन, संस्कृत साहित्य व व्याकरण, क्रिकेट का शौकीन विशेष- आकाशवाणी माउंट आबू से भेंट वार्ता(इंटरव्यू) प्रसारित  प्रतिलिपि पर पदार्पण - 9 मई 2019

समीक्षा
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    24 मई 2019
    दो पात्रों की यह ऐतहासिक लघुकथा, बच्चों की कहानी 'लोमड़ी और सारस' की तरह लग रही है | इस कथा का शीर्षक 'शिष्टाचार' विषय के अनुकूल नहीं है | इसका शीर्षक तो 'जैसे को तैसा' होना चाहिए | शीर्षक 'शिष्टाचार' तब सार्थक होता, जब विद्यासागर कर्र की तरह व्यवहार न करके अपनी भारताीय शिष्टता से पेश आते | ऐतिहासिक सच तो यह है कि अंग्रेज कभी गलत नहीं थे | दोष तो भारतवासियों में था, जो अपने ही बहुजन देशवासियों के साथ छूआछूत, भेदभाव का व्यवहार करके सदैव उनका अपमान किया करते थे | अंग्रेजों की ही देन है कि 'सती प्रथा' बंद हुई, 'विधवा विवाह' का प्रचलन हुआ, 'बहुविवाह' पर रोक लगा, और 'अस्पृस्यता' के विरुद्ध कानून बना | इसलिए अंग्रेजों को अहंकारी और अशिष्ट कहना अपनी अल्पज्ञता का परिचय देना है |
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    Rajender K Guru
    17 मई 2019
    वाह!! क्षितिज साहब। कमाल कर दिया आपने। आपकी गद्य विधा बहुत कमाल की है। अद्भुत लेखन। रही बात अच्छे या बुरे लोगो की तो भगवान् श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि दुष्ट लोगो को उन्ही की भाषा में समझाना चाहिए। वही विद्यासागर जी ने कर्र के साथ किया। जैसे को तैसा होना ही चाहिए। कहानी अंत तक रोचकता बनाकर रखती है। इसे हंस में भेझ दो निश्चित ही प्रकाशित होगी। इसके अलावा कथा सम्मान प्रतियोगिता में भी भाग लो। गुरु के जैसा तो तुम लिखते हो और मुझे अपना गुरु बोलते हो। कमाल है। होनहार बिरवान के होत चिकने पात। ऐसे ही लिखते रहो उज्जवल भविष्य आपके सामने है। ✍️✍️✍️🙏🙏😊😊
  • author
    17 मई 2019
    बहुत ही गजब की लेखन शैली है आपकी क्षितिज।पूरी कहानी अंत तक बांधे रखती है ।कहीं भी आप विषय से भटके नहीं है ।ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी जैसे देश के गौरवशाली चरित्र पर ये रचना लिखना वाकई प्रशंसनीय है 👏👏👏👏👏👏
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    24 मई 2019
    दो पात्रों की यह ऐतहासिक लघुकथा, बच्चों की कहानी 'लोमड़ी और सारस' की तरह लग रही है | इस कथा का शीर्षक 'शिष्टाचार' विषय के अनुकूल नहीं है | इसका शीर्षक तो 'जैसे को तैसा' होना चाहिए | शीर्षक 'शिष्टाचार' तब सार्थक होता, जब विद्यासागर कर्र की तरह व्यवहार न करके अपनी भारताीय शिष्टता से पेश आते | ऐतिहासिक सच तो यह है कि अंग्रेज कभी गलत नहीं थे | दोष तो भारतवासियों में था, जो अपने ही बहुजन देशवासियों के साथ छूआछूत, भेदभाव का व्यवहार करके सदैव उनका अपमान किया करते थे | अंग्रेजों की ही देन है कि 'सती प्रथा' बंद हुई, 'विधवा विवाह' का प्रचलन हुआ, 'बहुविवाह' पर रोक लगा, और 'अस्पृस्यता' के विरुद्ध कानून बना | इसलिए अंग्रेजों को अहंकारी और अशिष्ट कहना अपनी अल्पज्ञता का परिचय देना है |
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    Rajender K Guru
    17 मई 2019
    वाह!! क्षितिज साहब। कमाल कर दिया आपने। आपकी गद्य विधा बहुत कमाल की है। अद्भुत लेखन। रही बात अच्छे या बुरे लोगो की तो भगवान् श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि दुष्ट लोगो को उन्ही की भाषा में समझाना चाहिए। वही विद्यासागर जी ने कर्र के साथ किया। जैसे को तैसा होना ही चाहिए। कहानी अंत तक रोचकता बनाकर रखती है। इसे हंस में भेझ दो निश्चित ही प्रकाशित होगी। इसके अलावा कथा सम्मान प्रतियोगिता में भी भाग लो। गुरु के जैसा तो तुम लिखते हो और मुझे अपना गुरु बोलते हो। कमाल है। होनहार बिरवान के होत चिकने पात। ऐसे ही लिखते रहो उज्जवल भविष्य आपके सामने है। ✍️✍️✍️🙏🙏😊😊
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    17 मई 2019
    बहुत ही गजब की लेखन शैली है आपकी क्षितिज।पूरी कहानी अंत तक बांधे रखती है ।कहीं भी आप विषय से भटके नहीं है ।ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी जैसे देश के गौरवशाली चरित्र पर ये रचना लिखना वाकई प्रशंसनीय है 👏👏👏👏👏👏