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शायरी

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4.1

1) फितरत ही मुझ ग़रीब की कुछ ऐसी है ना पल पल बदलता मौसम अच्छा लगता है ना पल पल बदलता इंसान 2 )इस दुनिया से नहीं है वास्ता मेरा कोई ग़ुरबत में मेरी ज़िन्दगी का मज़ा है ना छोड़ने के लिए मजबूर है ज़िन्दगी ...