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शायरी

4.1
2701

1) फितरत ही मुझ ग़रीब की कुछ ऐसी है ना पल पल बदलता मौसम अच्छा लगता है ना पल पल बदलता इंसान 2 )इस दुनिया से नहीं है वास्ता मेरा कोई ग़ुरबत में मेरी ज़िन्दगी का मज़ा है ना छोड़ने के लिए मजबूर है ज़िन्दगी मेरी दामने वक़्त में मौत की गुंजाइश कहा है 3) ख्याले ग़फ़लत में ज़िन्दगी राह चल रही थी ज़िन्दगी मेरी अश्क़ो का दरिया बहा रही थी समेटने की मेरी नाकाम कोशिश थी जारी ज़िन्दगी अपने उसूलो से मुझे जला रही थी 4) आखिर औक़ात ही क्या है तेरी और मेरी मंज़िल राख़ और खाक़ है तेरी और मेरी 5) उम्मीदे वफ़ा थी कभी तुम आज आज़माइशे ...

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लेखक के बारे में
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Salman Hussain
समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    sandeep parihar "Banti"
    03 दिसम्बर 2018
    5 star
  • author
    विद्या शर्मा
    02 मार्च 2019
    wonder ful...plz write many more
  • author
    Bhoomi
    30 अक्टूबर 2018
    Bohat khub👌🏻👍🏻
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    sandeep parihar "Banti"
    03 दिसम्बर 2018
    5 star
  • author
    विद्या शर्मा
    02 मार्च 2019
    wonder ful...plz write many more
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    Bhoomi
    30 अक्टूबर 2018
    Bohat khub👌🏻👍🏻