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शायद

4.2
544

कुछ शब्द छुप कर वार करते हैं...और घायल होने के बाद उन पर ध्यान जाता है. ‘शायद’...तीन अक्षर का... बेमतलब का... अर्थहीन... व्यर्थ का शब्द. मगर आप सबको आगाह कर दूँ कि इसकी मार बहुत जबर्दस्त होती है. ...

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लेखक के बारे में

4 दशकों तक अनेक बैंकों में कार्यरत रह कर और सेवाकाल के आखिरी वर्षों में विदेश के बैंक से CEO पद से सेवानिवृत्त हो कर, इन्होंने अपनी लेखन रूचि पर ध्यान दिया. देश विदेश में घूमे तो पाया कि हर व्यक्ति किसी कहानी का पात्र है और उससे जुड़े अनेक तजुर्बे ख़ुद कहानी हैं. उनके दर्द और खुशियों के लम्हों को महसूस करते ही कहानियां ख़ुद-ब-ख़ुद इनकी कलम से निकलने लगती हैं. इनकी अनेक कहानियां सरिता, वनिता, गृहशोभा, मनोरमा, मेरी सहेली इत्यादि में छप चुकी हैं. इनके अनुसार हास्य और व्यंग चहू ओर बिछा पड़ा है...बस...उसे पकड़ कर...समेट कर अपने शब्दों में बयाँ करना है. बाक़ी काम तो हमारे प्रिय पाठक कर देते हैं. इनका मानना है कि आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियायें ही हैं जो इन्हें आपका प्रेम दर्शाएँगी और इनकी लेखनी को और बेहतर बनाएँगी. अपने बृहत् बैंकिंग अनुभव के कारण, यह अपना अधिकतर समय लोगों को उनके personal finance में उनके नि:शुल्क ऑनलाइन मार्गदर्शन करने में लगाते हैं. इनका YouTube चैनल (@anuragdureha) लोगों की अनेक गलतियों से उनको सचेत करता है।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    19 जनवरी 2020
    अच्छा लिखा है शायद
  • author
    Raja Kumar Raja
    07 अप्रैल 2018
    nice
  • author
    Kamlesh Patni
    31 अगस्त 2021
    वाह वाह बहुत सटीक व्यंग्य। हां या ना के बीच शायद आप को बचाने का सरल माध्यम बन जाता है।
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    19 जनवरी 2020
    अच्छा लिखा है शायद
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    Raja Kumar Raja
    07 अप्रैल 2018
    nice
  • author
    Kamlesh Patni
    31 अगस्त 2021
    वाह वाह बहुत सटीक व्यंग्य। हां या ना के बीच शायद आप को बचाने का सरल माध्यम बन जाता है।