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शनिवार के इंतज़ार में

3.7
1195

अकेले रात भर उस अजनबी शहर में मेरी याद तेरे सिरहाने बैठकर तुझे जगाये रखती है. हर पल ,पल पल करवट बदल कर खामोश बंद निगाहों से ताका करते हो तुम अपने सिरहाने को कुछ कहते नही बनता चुप रहते भी नही पर ...

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लेखक के बारे में
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Neelima Sharma Nivia

नीलिमा शर्मा कोई ख़ुशबू उदास करती है कहानी संग्रह की लेखिका ,मुट्ठी भर अक्षर,खुसरो दरिया प्रेम का , आईना सच नही बोलता हाशिये का हक़ ,मूड्स ऑफ लॉक डाउन , लुका छिपी, मृगतृष्णा की संपादक ओर लेखक

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    rashmi tarika
    21 అక్టోబరు 2015
    Lajawaab...sundar rachna...
  • author
    Anil Analhatu
    27 అక్టోబరు 2015
    प्रेम की उत्कटता दुरीयों को पाट देती है। यह अजीब और आश्चर्यजनक नहीं है कि हज़ारो मिल की दुरी पर एक पहाड़ी शहर में छूट हुई पत्नी या प्रेमिका अपने प्रेमी की मनःस्थिति का सही सही अंदाज़ा लगा लेती है। वह क्या और कितनी शिद्दत से महसूस कर रहा है , उसे भी महसूस कर लेती है। अद्भुत प्रेम की यह अनोखी तन्मयता अद्भुत है। ऐसे ही किसी प्रेम में डूब जाने का मन करने लगता है। बहुत बहुत बधाई नीलिमा जी।
  • author
    29 మే 2020
    अचानक ही मेरी पुरानी यादों की बारिश बेतरतीब से ख्याली बुद बन उकेरने को मचलने लगते है अक्सर तेरे सिरहाने बैठने पर ऐसा होता है वजह आज तक समझ नहीं आई किन्तु तेरे वो सिहरन तेरी वो मासूम बच्चों वाली अदा यादों के भवर जाल को तोड़ मुझे फिर आज में ले आती है। तेरी वो बन्द निगाहों से ताकने की कला काश मुझ में भी होती यादों की कसावट को तोड़ हर एक पल में तुझमें ही डूबा रहता ।
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    rashmi tarika
    21 అక్టోబరు 2015
    Lajawaab...sundar rachna...
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    Anil Analhatu
    27 అక్టోబరు 2015
    प्रेम की उत्कटता दुरीयों को पाट देती है। यह अजीब और आश्चर्यजनक नहीं है कि हज़ारो मिल की दुरी पर एक पहाड़ी शहर में छूट हुई पत्नी या प्रेमिका अपने प्रेमी की मनःस्थिति का सही सही अंदाज़ा लगा लेती है। वह क्या और कितनी शिद्दत से महसूस कर रहा है , उसे भी महसूस कर लेती है। अद्भुत प्रेम की यह अनोखी तन्मयता अद्भुत है। ऐसे ही किसी प्रेम में डूब जाने का मन करने लगता है। बहुत बहुत बधाई नीलिमा जी।
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    29 మే 2020
    अचानक ही मेरी पुरानी यादों की बारिश बेतरतीब से ख्याली बुद बन उकेरने को मचलने लगते है अक्सर तेरे सिरहाने बैठने पर ऐसा होता है वजह आज तक समझ नहीं आई किन्तु तेरे वो सिहरन तेरी वो मासूम बच्चों वाली अदा यादों के भवर जाल को तोड़ मुझे फिर आज में ले आती है। तेरी वो बन्द निगाहों से ताकने की कला काश मुझ में भी होती यादों की कसावट को तोड़ हर एक पल में तुझमें ही डूबा रहता ।