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शाम हो जाती है...

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जीवन की भाग-दौड़ में - क्यूँ  वक़्त के साथ रंगत खो जाती है.. हँसती-खेलती जिंदगी भी आम हो जाती है.. एक सवेरा था जब हम हँस कर उठते थे.. और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है.. ✍️✍️✍️ ...

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लेखक के बारे में
author
Sanjay Kumar Yadav

Delhi में job के साथ साथ study करता हूँ उसके बाद जो थोड़ा समय मिलता हैँ तो लिख लेता हूँ........ ज्यादा तो नहीं लेकिन जो भी लिखता हुँ, दिल से लिखता हुँ और कोशिश यही रहती है की मेरा लिखा हुआ सबको पसंद आये..... 🙏🙏🙏 निर्मल शब्द मैंने अपने स्वर्गीय माँ निर्मला देवी जी के नाम से लिया है.. आज वो मेरे साथ तो नहीं है लेकिन उनका नाम मेरे साथ हमेशा रहेगा 🙏🙏🙏

समीक्षा
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    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    Pratima Yadav "Pritam"
    17 अप्रैल 2024
    hmm.. sahi bat h.. bahut acha likha h apne....👌🏾👌🏾👌🏾👏👏👏👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
  • author
    sinju maurya
    17 अप्रैल 2024
    बिल्कुल सही कहा आपने,,, सुन्दर अभिव्यक्ति ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
  • author
    Devaki🌹Ďěvjěěţ🌹 Singh
    23 अप्रैल 2024
    बहुत ही बेहतरीन लिखा आपने
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  • author
    Pratima Yadav "Pritam"
    17 अप्रैल 2024
    hmm.. sahi bat h.. bahut acha likha h apne....👌🏾👌🏾👌🏾👏👏👏👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
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    sinju maurya
    17 अप्रैल 2024
    बिल्कुल सही कहा आपने,,, सुन्दर अभिव्यक्ति ✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️
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    Devaki🌹Ďěvjěěţ🌹 Singh
    23 अप्रैल 2024
    बहुत ही बेहतरीन लिखा आपने